कहानी कश्मीर की-1 

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aadil

*’जन्नत’ में भी ये बेक़रारी क्यों हैं*                                                  कश्मीर के लिए निकलते वक़्त  दोस्त अनंत तिवारी ने कहा था कि पत्थरबाजों की मनोदशा समझ कर आना। जम्मू से जब श्रीनगर के लिए टैक्सी से रवाना हुआ तो मन में यही उधेड़बुन थी कि कश्मीरियों के मन कैसे टटोलूँगा! क्योंकि इंदौर आने वाले कश्मीरियों की जब भी थाह लेना चाही नाकामी ही हाथ लगी,कि वे डुबकी भी नहीं लगाने देते हैं। बहरहाल इसी उधेड़बुन में 9 किलोमीटर लंबी देश की सबसे बड़ी अटल सुरंग पार हो जाती है और लगभग ढाई किलोमीटर लम्बी देश की दूसरी बड़ी सुरंग भी आ जाती है,अंधेरी  सुरंग में जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं उम्मीद की किरण नज़र आने लगती है कि आगे उजाला है, लेकिन कश्मीरियों के भविष्य की सुरंग ऐसी है जिसमें वो पिछले सत्तर साल से बस चले ही जा रहे हैं, अंधेरा छंटने का नाम ही नहीं ले रहा हैं। पहाड़ों से लिपटी सड़कें जैसे ही कश्मीर की वादी में पहुंचाती हैं, जहां कश्मीरियों के चेहरों पर इस अंधेरे का साया साफ़ नज़र आता हैं। अभी कश्मीरियों के मन की बात जानने की तरक़ीब सोच ही रहा था कि अनन्तनाग पार करके गाड़ी पोरम्पो पहुंच जाती है,लेकिन सूरज की रफ़्तार को मात देने की जल्दी और हमारे रात ढलने से पहले श्रीनगर पहुंचने की ज़िद के बीच गाड़ी का पहिया पंक्चर हो जाता है, जहां गाड़ी पंक्चर होती है वहीं समीर प्रोविजन स्टोर है। जहां पांच-छह लोग बैठकर गप्पे मार रहे थे, पंक्चर गाड़ी देख वे सब मदद के लिए दौड़ पड़ते हैं,आगे पता चलता है कि मुसाफिरों की मदद करना कश्मीरियों की आदत में शुमार है। यहीं पर मेरी परेशानी भी खत्म होती है, मैं सकुचाते हुए उनसे बात छेड़ता हूं और वो फट पड़ते हैं! कहते हैं, हम तो दो मुल्कों के बीच फसें हुए हैं, हमारा फैसला भी उन्हें ही करना है। लेकिन आखिर ये कब तक चलेगा, ये सवाल हर कश्मीरी की ज़ुबान पर है। किराना दुकान के मालिक समीर अहमद अपने मोबाइल पर वीडियो दिखाते हुए कहते हैं इन बच्चों का क्या कसूर था, एक जवान लड़के की लाश का फोटो दिखाते हुए कहते हैं कि इसे मार कर छत से फैक दिया गया इसका तो कोई कसूर नहीं था।                                      इन पांच-छह लोगों से करीब घण्टाभर बात होती है,तो कश्मीरियों से खुलकर बात करने की हिम्मत आ जाती है, फिर तो क्या ड्राइवर, क्या होटल वाला,क्या दुकानदार क्या रिक्शेवाला, क्या वेटर,  क्या शिकरेवाला, क्या महिला, क्या बच्चे सब से बात होती है और सब कुछ खुली किताब सा सामने आ जाता है, ये वो सच होता है जो कश्मीर में आए बिना नहीं सुना जा सकता। बातचीत में जिसे भी पता चलता है मैं पत्रकार हूं, शिकायत सामने आ जाती है। *पत्रकार के नाते अपनी जमात की शिकायत सुनने की अब आदत सी पड़ गई है, लेकिन एक भरोसा हमेशा की तरह काम आता है और वो भरोसा “प्रभातकिरण” का है, मैंने हर जगह आत्मविश्वास से लबरेज होकर कहा कि मैं उस अखबार में हूं, जो सच लिखता है* यकीन जानिए मेरे आत्मविश्वास ने मुझ पर उनका भरोसा बढ़ाया।       लेकिन सभी का कहना है कि मीडिया तो हमारी खबर बताता ही नहीं है, आप देखेंगे कि कश्मीरी है कुछ और मीडिया बताता कुछ है। खैर रात ढलते-ढलते श्रीनगर पहुंच जाते हैं जहाँ  सत्रह- अट्टाहर साल का लड़का हमारा रूम अटेंडर है, वो फौरन सामान उठाकर हमें अपने रूम तक पहुंचा देता है।                          सुबह गुलमर्ग के लिए टैक्सी तैयार थी जिसके ड्राइवर फ़िरोज़ बट्ट श्रीनगर के बारें में बताते हुए कहने लगते हैं कि  चार साल पहले तक श्रीनगर में कुछ नहीं था, अब यहां भी माहौल खराब होने लगा है, आए दिन बन्द हो जाता है। पत्थरबाजी क्यों करते हो, के सवाल पर उलट सवाल करते हैं कि चलों मान लो हम प्रदर्शन करते हैं, सड़क पर आते हैं, लेकिन हमारी माँ, बहन, बेटियों का क्या कसूर है, हमारे बूढ़े मां-बाप का कसूर क्या है, उन्हें क्यों परेशान करते हो, यही  सवाल गुलमर्ग और कश्मीरी घोड़े पर सवार होकर बर्फ़ की आगोश में पहुंचकर भी सामने आता है, यहां एक सैलानी ज्यादा और कश्मीरी कम मिलते हैं, लेकिन जो मिलते हैं वो भी यही कहते हैं। गुलमर्ग से लौट कर होटल पहुचते है तो सामने पहाड़ी की खूबसूरती को समेटे रईस की मुस्कान हमारा स्वागत करती है, वो झट से हमारा बेग उठा लेता हैं, मैं कहता हूं नहीं मैं खुद उठा लूंगा तो कहता है, “जी कोई नी” और बेग उठाकर कमरे में पहुंचा देता है। पूछा पढ़ाई नहीं करते हो, तो कहता है “करता हूं, लेकिन बाप ने कहा छोड़ो और होटल भेज दिया, मैं भी पत्थरबाजी करने लगा था, तो वो नाराज़ हो गए कहने लगे इतने बरसों में कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा, काम धंधा करो। वो हमसे ज्यादा जानते हैं इसलिए उनकी बात मान कर मैं होटल में काम करने लगा हूं, लेकिन मैं जान की परवाह नहीं करता, हर वक्त देने को तैयार हूं” उसके मासूम चेहरे पर अजीब से भाव थे! दूसरे दिन सुबह लेह जाने का प्रोग्राम था इसलिए रात में ही टैक्सी की तलाश शुरू कर दी, इसी दौरान कश्मीरियों का धर्मनिरपेक्ष चेहरा नज़र आया। मैंने कश्मीरियों में सांप्रदायिकता ढूंढने के लिए होटल के काउंटर पर बैठे इरशाद से पूछा लेह ले जाने वाला ड्राइवर मुसलमान तो है ना! इरशाद ने बिन एक पल गवाएं कहा हिन्दू-मुस्लिम सब हमारे भाई हैं, कोई भी ले जाये आपको क्या फर्क पड़ता हैं, कश्मीरियों से आपको डरने की जरूरत नहीं है। उसकी इस बात से लगा कि ड्राइवर हिन्दू होगा, लेकिन आपको ये जानकर हैरत नहीं होगी कि कश्मीर में बहुत कम हिन्दू हैं, और ड्राइवर तो एक भी हिन्दू नज़र नहीं आया, अलबत्ता यहां की मशहूर शाकाहारी रेस्टोरेंट न्यू कृष्णा ढाबा है, जहां खाना खाने के दौरान पता चला कि बाजू में ही दुर्गा मंदिर है जिसके पास किराने की दुकान में बड़ी सी बिंदी लगाई  कश्मीरी पंडित महिला बैठी थी, उनसे पत्नी जिसका घर का नाम नेहा है का परिचय करवाया तो बोली हम तो आज़ाद भारत में हैं, हमें कहे कि आज़ादी चाहिए, ये लोग(कश्मीरी मुस्लिम) भी हमसे कहते हैं तो हम यही जवाब देते हैं कि हम तो आज़ाद हैं भारत आज़ाद है। पूछा कि आप लोग कश्मीर से गए नहीं तो कहने लगीं जो बड़े लोग थे वो गए हैं, मैं तो उस वक़्त सोलह साल की थी जब यहां हालात खराब हुए थे, और लोग घर छोड़कर जाने लगे थे, पूछा उस वक़्त कश्मीरी पंडितों की महिलाओं के साथ “कुछ” हुआ तो वो बोली नहीं बिल्कुल नहीं, कभी नहीं हुआ, मुझे मुसलमानों के लड़के माँ भी कहते हैं, आंख उठाकर नहीं देखा आज तक उन्होंने झूट क्यों बोलूं। चालीस साल की हो गई हूं मैंने आजतक मिलिटेंट (आंतकवादियों) को नहीं देखा, वो इन लोगों(कश्मीरी मुसलमानों) के घर आते भी हैं लेकिन हम लोगों(हिंदुओं) के यहां नहीं आते, हमें परेशान नहीं करते। इस महिला की बात हो मजबूत करते हैं, कश्मीर का अकबर कहलाने वाले बादशाह जैनुलआब्दीन की माँ के मक़बरे के पास के बाजार के व्यापारी मुश्ताक डार। वे कहते हैं कि सतीश शर्मा मेरे दोस्त हैं वो यहां से चले गए लेकिन हमारी दोस्ती अब भी है, वो पिछले दिनों ही हमारे यहां शादी में आए थे, यहां पास ही इंद्रा नगर में देख लो कितने हिन्दू हैं उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती, वे कहते हैं कि भारत-पाकिस्तान को मिलकर बात करना चाहिए, कोई मसला ऐसा नहीं है जिसका हल बातचीत से ना निकलता हो, इसी बीच पास ही में खड़े एक नोजवान ने टोका कि बातचीत तीनों के बीच होना चाहिए, हमारी मर्ज़ी भी पूछी जाना चाहिए।

…जारी

#आदिल सईद

परिचय : आदिल सईद पत्रकारिता में एक दशक से लगातार सक्रिय हैं और सामाजिक मुद्दों पर इन्दौर से प्रकाशित साँध्य दैनिक पत्र में अच्छी कलम चलाते हैं। एमए,एलएलबी सहित बीजे और एमजे तक शिक्षित आदिल सईद कला समीक्षक के तौर पर जाने जाते हैं। आप मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर में रहते हैं।

Arpan Jain

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।