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छोड़ कर बढ गया है कोई,मंजिलों के वास्ते।
लाँघकर निकला है कोई,नफरतों के रास्ते।
मिट गया है अब घरों में,खौप जो छाया रहा ,
सो रहे हैं चैन से ,रातों में अब न जागते।
खंजरों के खेल से, अब थक चुका है आदमी।
मौत के साये से निकल अब जिन्दगी की सोचते।
आज फिर महकी फिज़ाओं में वही मस्ती अलग,
जी रहा है हमवतन,अब हमवतन के वास्ते।
रंगबिरंगी संस्कृति का इन्द्र धनुष सुन्दर बना।
नेह के निर्झर बने एक दूजे को अब निहारते।
एकता का रूप अनूठा जग में मिसाल बन गया
“कुसुम” यह सपना सुघड़ देखती है जागते।
#पुष्पा शर्मा
परिचय: श्रीमती पुष्पा शर्मा की जन्म तिथि-२४ जुलाई १९४५ एवं जन्म स्थान-कुचामन सिटी (जिला-नागौर,राजस्थान) है। आपका वर्तमान निवास राजस्थान के शहर-अजमेर में है। शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र में आप राजस्थान के शिक्षा विभाग से हिन्दी विषय पढ़ाने वाली सेवानिवृत व्याख्याता हैं। फिलहाल सामाजिक क्षेत्र-अन्ध विद्यालय सहित बधिर विद्यालय आदि से जुड़कर कार्यरत हैं। दोहे,मुक्त पद और सामान्य गद्य आप लिखती हैं। आपकी लेखनशीलता का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है।
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