अपने दुःखों को हमेशा,
मुझसे छुपाती है मेरी माँ।
मेरे लिए अनेक,
कष्ट उठाती है मेरी माँ।
मेरी नादान हरकतों पर,
पड़ोसी बार-बार उलाहने देते,
करके मेरी ही वकालत,
मेरी हर बात दबाती है मेरी माँ।
कहीं मेरी आदत न बिगड़ जाए,
इसलिए कभी डाँटकर।
कभी प्यार से,
मुझे बार-बार समझाती है मेरी माँ।
मेरी जिद्द और मेरी शरारत
सबको क्रोध दिलाती है।
पर मुझे ममता के आँचल में छुपाकर,
मुझ पर स्नेह लुटाती है मेरी माँ।
नाना जी की लाई हुई मिठाइयां,
जब घर में ही चुक जाती है।
अपने हिस्से का मेरे लिए बचाकर,
मुझको खिलाती है मेरी माँ।
मैं देर रात तक घर नहीं आता हूँ,
तो सब सो जाते हैं।
तवे से ढकी गर्म रोटियाँ खिलाने के लिए,
मुझे हारता देख,
लोग मेरा उपहास न करें।
इसलिए मंदिर की चौखट पर,
आँचल पसारकर
मेरी सफलता के लिए
भगवान को मनाती है मेरी माँ।
मैं घर से निकलता हूँ तो,
संग उसकी दुआएं होती हैं।
मेरे घर न रहने पर छुप-छुप के,
#दीपक शर्मा
परिचय: दीपक शर्मा की जन्मतिथि-२७ अप्रैल १९९१ है। आपका स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है,जबकि वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रावास में रहते हैं बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) तक शिक्षित श्री शर्मा फिलहाल एम.ए. में अध्ययनरत(हिंदी)हैं। आप कविता,लघुकथा,आलेख सहित समीक्षा भी लिखते हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक जुड़े हुए हैं।आपकी लेखनी का उद्देश्य- देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।