बौद्धिक सोच

0 0
Read Time3 Minute, 2 Second
chandra sayata
जानती हूं मैं नारी हूं,
आदेश था बस सुन सकती।
बरसों से यूं सुनती रही,
अब बहुत कुछ कह सकती।
चूंकि आज सतयुग है नहीं,
मैं सीता नहीं बन सकती।
चूंकि आज द्वापर भी नहीं,
मैं राधा नहीं बन सकती।
कल्पना चावला रूप धर,
भेद अंतरिक्ष जा सकती।
फाइटर-पायलेट बनकर,
लोहा शत्रु से ले सकती।
मैं अधम नर अपराधी को,
संगीन सज़ा सुना सकती।
कला-साहित्य के क्षेत्र में,
नर को पानी पिला सकती।
स्वार्थवश अराजक बन के,
कोहराम तक मचा सकती।
व्यवस्था भंग होने पर कभी,
नियंत्रण-कदम उठा सकती।
नर वर्षों से अभिमानी था,
नारी क्योंं नहीं हो सकती ?
कलयुग चला अंत की ओर,
नारी नर को हरा सकती।
अधिकार-वजन को तौलती,
तराज़ू ही कुछ कह सकती।
नर-नारी  का खेल अजीब,
नियति ही स्वयं बता सकती।

         

#डॉ.चंद्रा सायता
परिचय: मध्यप्रदेश के जिला इंदौर से ही डॉ.चंद्रा सायता का रिश्ता है। करीब ७० वर्षीय डॉ.सायता का जन्मस्थान-सख्खर(वर्तमान पाकिस्तान) है। तत्कालिक राज्य सिंध की चंद्रा जी की शिक्षा एम.ए.(समाजशास्त्र,हिन्दी साहित्य,अंग्रेजी साहित्य) और  पी-एचडी. सहित एलएलबी भी है। आप केन्द्र सरकार में अधिकारी रहकर 
जुलाई २००७ में सेवानिवृत्त हुई हैं। वर्तमान में अपना व्यक्तिगत कार्य है। लेखन से आपका गहरा जुड़ाव है और कविता,लघुकथा,व्यंग्य, आलेख आदि लिखती हैं। हिन्दी में ३ काव्य संग्रह, सिंधी में ३,हिन्दी में २ लघुकथा संग्रह का प्रकाशन एवं १ का सिंधी अनुवाद भी आपके नाम है। ऐसे ही संकलन ७ हैं। सम्मान के तौर पर भारतीय अनुवाद परिषद से, पी-एचडी. शोध पर तथा कई साहित्यिक संस्थाओं से भी पुरस्कृत हुई हैं। २०१७ में मुरादाबाद (उ.प्र.) से स्मृति सम्मान भी प्राप्त किया है। अन्य उपलब्धि में नृत्य कत्थक (स्नातक), संगीत(३ वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण),सेवा में रहते हुए अपने कार्य के अतिरिक्त प्रचार-प्रसार कार्य तथा महिला शोषण प्रतिरोधक समिति की प्रमुख भी वर्षों तक रही हैं। अब तक करीब ३ हजार सभा का संचालन करने के लिए प्रशस्ति -पत्र तथा सम्मान पा चुकी हैं। लेखन कार्य का उद्देश्य मूलतः खुद को लेखन का बुखार होना है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तेरा हर व्यवहार हूँ मैं

Mon Feb 5 , 2018
मैं तुझ आत्मा का कौन हूँ! पल-पल का साथी, तेरा हर व्यवहार हूँ मैं। तेरे सब रिश्ते-नातों  का सात्विक सार हूँ मैं, तुझमें ही रचा-बसा,घुला-मिला तुझसे भी पार हूँ मैं। पल-पल का साथी, तेरा हर व्यवहार हूँ मैं॥ तुझसे भरा हुआ,तुझसे भी रिक्त, तेरे ममत्व से स्वयं को कर अभिषिक्त […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।