मेरा अब्दुल्ला 

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कहावत है बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना,
इश्क की शमा में सदा जलता है परवाना।
आदत से मजबूर ये दो भले ही किरदार हैं,
अंदाज मजाकिया लेकिन बात वजनदार है।
अपनी खुशी मे खुश हुए तो क्या खुश हुए,
अपने गम मे अगर गमगीन हुए तो क्या हुए।
मजा तो पराई खुशी में मुस्कुराने का है,
दूसरों की खुशी पर ठहाके लगाने का है।
अपनी आग में तो हर कोई जलता है,
शमा की आग में परवाना मचलता है।
दिवानों की बातें दिवाने ही जानते हैं,
जलने का मजा परवाने ही जानते हैं।
जो मजा खोने में है वो पाने में कहां ?
जो मजा जन्नत में है, वो जमाने में कहां ?
त्याग और आसक्ति में त्याग ही सदा महान है,
संसार अब्दुल्ला और परवानों की दास्तान है।
ये महज किरदार नहीं,जुनून जज्बा और दर्शन है,
जिन्दगी निकटता का नहीं,दूरियों का आकर्षण है।
अब्दुल्ला बने बिना जिन्दगी अधूरी है,
शमा की आग ही परवाने की धुरी है।
हो सके तो इस आग को कभी बुझने मत देना,
अपने अंदर के अब्दुल्ला को कभी मरने मत देना॥
             #डॉ. देवेन्द्र  जोशी

परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।

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