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ज्ञान नहीं था जिन्हें किताबों का,
न था जिन्हें सदी का पता
वो मुझे मुकाम तक पहुंचा गए,
ऐसे थे मेरे पिता।
संस्कारों की पोटली थी,
गृहस्थ जीवन की सीख दी
दुनियादारी से जूझना सिखा गए,
ऐसे थे मेरे पिता।
अपनों के बीच अर्जुन बनो,
त्याग के समय देवी बनो
हर परिस्थिति में ढलना सिखा गए,
ऐसे थे मेरे पिता।
चपल चतुर व्यक्ति से बचना,
जहाँ हो ज़रूरत कर्ण बनना
अपने व अपनों के लिए जीना बता गए,
ऐसे थे मेरे पिता ।
जब हो कठिन पथ साथ होते हैं,
वार जब हो ढाल बन जाते हैं
अनोखी शख्सियत जो रखते थे,
ऐसे थे मेरे पिता॥
#प्रेरणा सेंद्रे
परिचय: प्रेरणा सेंद्रे इन्दौर में रहती हैं। आपकी शिक्षा एमएससी और बीएड(उ.प्र.) है। साथ ही योग का कोर्स(म.प्र.) भी किया है। आप शौकियाना लेखन करती हैं। लेखन के लिए भोपाल में सम्मानित हो चुकी हैं। वर्तमान में योग शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं।
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