Read Time2 Minute, 12 Second
आज आसमाँ भी रोया मेरे हाल पर और, अश्कों से दामन भिगोता रहा।
वो तो पहलू से दिल मेरा लेकर गए और, मुड़कर न देखा,मैं अब क्या करुं॥
उनकी यादें छमाछम बरसती रहीं,
मन के आंगन को मेरे भिगोती रहीं।
खून बनकर गिरे अश्क रुखसार पर,
कोई पोंछे न आकर,मैं अब क्या करुं॥
मैं तो शमा की मानिंद जलती रही,
रात हो-दिन हो या के हो शामो-सहर।
जो पतंगा लिपटकर जला था कभी,
चोट खाई उसी से,मैं अब क्या करुं॥
जब भी शाखों से पत्ते गिरे टूटकर,
मैंने देखा उन्हें है सिसकते हुए।
यूँ बिछुड़ करके मिलना है सम्भव नहीं,
हैं बहते अश्कों के धारे,मैं अब क्या करुं॥
वो मेरी मैय्यत में आए बड़ी देर से,
और अश्कों से दामन भिगोते रहे।
जीते-जी तो पलटकर न देखा कभी,
बाद मरने के आए,मैं अब क्या करुं॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
Post Views:
702