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हमने सोचा नहीं,
कब ये जाना नहीं
इश्क तुमसे हुआ,
हमको क्या हो गया
जिंदगानी मेरी,
थी बड़ी बेजुबां
चांद आँगन में उतरा,
जवां हो गया।
जो थी अब तक कोई,
राजदारी मेरी
मुझको तुम जो मिले
सब बयां हो गया,
तेरी नजर मिली
या कयामत हुई,
दिल ये मासूम था
बस फ़ना हो गया,
चाहतें उनकी अब
यूं मेहरबां हुई,
हक मोहब्बत का
भी तो अता हो गया।
तुमसे बातें हुई,
जाने आयत पढ़ी
बेचैन रातें हुई,
दिन गुनाह हो गया।
अब तो कहते हैं सब
मैं दीवानी हुई,
हाल क्या था मेरा
हाल क्या हो गया॥
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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Thu Jan 18 , 2018
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