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आओ सूरज की किरणों,
तुम्हें अपनी बांहों में समेट लूँ,
न फिर हो कहीं अंधेरा,
किसी की जिंदगी की राहों में।
न हो कोई बेबस,बेसहारा,
किसी की निगाहों में,
न हो कोई मजबूर,
न हो कोई मजलूम कभी भी।
हर मजबूर को थोड़ी-सी
उम्मीद का प्रकाश दे सकूँ,
इसलिए-
आओ सूरज की किरणों,
तुम्हें अपनी बांहों में समेट लूं॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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Wed Jan 17 , 2018
तस्वीर तेरी जब देखी,मैंने ये श्रंगार लिखा, अधरों ने तो कुछ न बोला,नैनों ने इकरार लिखा। बहती सर्द हवा के हाथों,मैंनें भी पैगाम दिए, तेरी यादों के सपनों को,जाने कितने नाम दिए। उर उपवन में खिलती कलियाँ,प्रेम-प्रेम महकाती है, सांसों की धीमी सरगम भी,नाम तुम्हारा गाती है। अंगड़ाई जब लेती […]