बदतर

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lalit sinh

दो जिस्म एक जान कभी हो ना पाए,
हमेशा रहते हैं भीड़ में,अकेले हो ना पाएl 

कौन याद करता है बिछड़ने के बाद अब,
हम तो चाहकर भी तुम्हें भुला ना पाएl 

हर किसी का वक्त बदलता है एक दिन जरूर,
बस वक्त पर ही अधिकार सब जमा ना पाएl 

है नहीं कोई मेरा हितैषी अब तो यहां पर,
अपने हित के लिए कभी हम लड़ ना पाएl 

बेहतर जिन्दगी पाने की चाहत में `ललित`,
बदतर जीवन को भी बदतर कभी कह ना पाएll 

               #ललित सिंह

परिचय :ललित सिंह रायबरेली (उत्तरप्रदेश) में रहते हैं l आप वर्तमान में बीएससी में पढ़ने के साथ ही लेखन भी कर रहे हैंl  आपको श्रृंगार विधा में लिखना अधिक पसंद है l स्थानीय पत्रिकाओं में आपकी कुछ रचना छपी है l 

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