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मन की पीड़ा
दिल का दर्द,
सबकी बस एक
तू ही दवा।
मेरे कान्हा,मेरे मालिक
तुझसे ये दूरी,
कब होगी पूरी
कब तक रहूँ मै यहाँ।
मन को न भाए
झूठे ये रिश्ते,
कैसे निभाऊं इन्हें
मै जाऊं कहाँ।
रोती हैं आँखें याद में तेरी
बावला हुआ है ये मन,
कैसे किसी को दूं ये जीवन
मेरा ये जीवन कहाँ मेरा रहा।
तू है जहाँ
मुझे ले चल वहाँ,
चरणों में अपनी
अब दे दे पनाह।
मेरे कान्हा,मेरे मालिक
तेरे बिना मेरा कोई कहाँ॥
#विनय पान्डेय
परिचय : विनय पान्डेय मध्यप्रदेश के कटनी में रहते हैं। आपका व्यवसाय पान्डेय ग्रुप आफ कम्पनीज प्राईवेट लि. है। एमबीए की शिक्षा पा चुके श्री पाण्डेय की विशेष रूचि मुक्तक,छंद, ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। उपलब्धियों की बात करें तो,कवि सम्मेलन और मुशायरा समूह का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। कई पत्रिका एवं समाचार-पत्र में कविताएँ प्रकाशित होती हैं।
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Sat Dec 23 , 2017
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