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तेरे संग रंग सब होली के
और रात दिवाली लगते हैं,
बिन तेरे दिल के हर कोने
सब खाली-खाली लगते हैं।
और लगते हैं मौसम सारे
जैसे कुदरत का ताना,
तेरे बिन अब गीत कहां और
बिन तेरे अब क्या गाना॥
अश्कों के माफिक लगती है
अब तो सारी बरसातें,
बिना चांद के खोई-खोई
सी लगती सारी रातें।
और लगती सब गलियां सूनी
जिनमें था तेरा आना,
तेरे बिन अब गीत कहां और
बिन तेरे अब क्या गाना॥
आंखों में है ख्वाब तुम्हारे
दिल में तेरी यादें हैं,
तू क्या जाने बिन तेरे हम
कितने आधे-आधे हैं।
चाहता हूं तेरी यादों में
फिर से वैसे खो जाना,
तेरे बिन अब गीत कहां और
बिन तेरे अब क्या गाना॥
तेरे बिन सूना जीवन और
आंखों में बरसातें हैं,
जीवन जाने कहां खो गया
चलती केवल सांसें है।
कोई दुआ अब काम न आवे
और किसी का समझाना,
तेरे बिन अब गीत कहां और
बिन तेरे अब क्या गाना॥
#अजीतसिंह चारण
परिचय: अजीतसिंह चारण का रिश्ता परम्पराओं के धनी राज्य राजस्थान से है। आपकी जन्मतिथि-४ अप्रैल १९८७ और शहर-रतनगढ़(राजस्थान)है। बीए,एमए के साथ `नेट` उत्तीर्ण होकर आपका कार्यक्षेत्र-व्याख्याता है। सामाजिक क्षेत्र में आप साहित्य लेखन एवं शिक्षा से जुड़े हुए हैं। हास्य व्यंग्य,गीत,कविता व अन्य विषयों पर आलेख भी लिखते हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं तो राजस्थानी गीत संग्रह में भी गीत प्रकाशित हुआ है। लेखन की वजह से आपको रामदत सांकृत्य साहित्य सम्मान सहित वाद-विवाद व निबंध प्रतियोगिताओं में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार मिले हैं। लेखन का उद्देश्य-केवल आनंद की प्रप्ति है।
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Fri Nov 17 , 2017
‘सुनीता कब से बोल रही हूँ,रोटी बनाने क़ो ! सुन ही नहीं रही। इतनी देर से फ़ोन पर किससे बातें कर रही है ?’ रीता झुंझलाते हुए आउटहाउस में सुनीता के कमरे की ओर चली गई। सुनीता हाथ में मोबाइल पकड़े हुए बुत-सी खड़ी थी और उसकी आँखों से लगातार […]
बहुत सुन्दर रचना