भूतल पर झुका हुआ अंबर,
है हरित आवरण मृदुल धरा..
सिंचित है तन-मन-यौवन,
है खोया-खोया-सा उपवन।।
इच्छाओं की बहती धारा में,
डूब रहा वह कंठ-कंठ तक..
है छिटक रहा मधु का प्याला,
है छिन-छिन घटता ये जीवन।।
मिलन-मिलाप की उत्कंठा में,
शीतल होते कई बरस..
झर-झर झरता है झरना,
बस कर्मयोग से है तरता।।
आंखों से उम्मीद किरण का,
बस पल में ठहर जाना..
मिल जाता है सबकुछ उसको,
बस थोडा़-सा मुस्कुरा जाना।।
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।