तेरी मधुशाला 

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kumari archana
बना लो तुम मुझे अपनी मधुशाला,
आऊँगी जब कभी तुम आवाज़ दोगे।
प्यार के रस की चासनी छलकाती हूँ,
नशा आँखों से बरसाती हुई…
बिना जाम पिए तुम मधहोश हो जाओगे,
गिरकर मेरी बाँहों में संभल जाओगे॥
दिन दोपरिया रात संवरियाँ,
सजा दूँगी तुम्हारी मोहब्ब़त की महफ़िल…
ध्यान रखना तुम्हारे सिवा कोई न हो,
मुझे आभास भी हुआ कोई और भी
शमां बन के वही जल जाऊँगी,
फिर चिरागों में मुझे तुम ढूँढते फिरना॥
मैं बच्चन  की  मधुशाला नहीं,
न ही सार्वजिक मधुशाला हो।
जो कोई नशेड़ी-जुआरी,
जब चाहे प्यास बुझाने को चला आए।
मैं तो तेरी मधुशाला हूँ मेरे धनश्याम॥                                                           #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला हरिश्चन्द्रपुर(पूर्णियाँ) की निवासी हैं।

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