Read Time3 Minute, 15 Second
जीत-हार की बात नहीं, संघर्ष अभी भी जारी है,
तब भी सीता हारी थी,तो अब भी सीता हारी है।
कैसे कह दूँ रावण हारा,बस उसके जल जाने से,
बचे हुए हैं कितने रावण,कर्मों का फल पाने से।
हे राम कहो- क्या सचमुच तुमने रावण को ही मारा था,
या फिर अपने निहित स्वार्थ में व्यक्ति एक संहारा था।
शायद जीत तुम्हारी अब भी इसीलिए शर्मिंदा है,
तुमने रावण मारा,लेकिन रावण अब भी जिन्दा है।
सीताओं का हरण आज भी खूब यहाँ पर होता है,
शासन और प्रशासन भी तो कुम्भकर्ण-सा सोता है।
छल-दंभ,द्वेष-पाखण्ड,झूठ का देखो बजता डंका है,
फूली और फली ये कैसी अहंकार की लंका है।
स्वर्ण हिरण बन जाने,कितने गली-गली में डोल रहे,
कौव्वों जैसी नीति-नीयत,पर कोयल जैसा बोल रहे।
खुद ही खुद का रावण मारें,खुद ही खुद का राम बनें,
नीति-नीयत हो पुण्य कर्म,फिर सत्य सुखद परिणाम बनें।
जब तक नारी नहीं सुरक्षित,जब तक नारी हारी है,
जीत-हार की बात नहीं,संघर्ष अभी भी जारी है॥
#ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।
Post Views:
487