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जिसके नैनों का नीर ही सूख चुका,
ऐसे अन्धों को दर्पण दिखाने से क्या।
जिसकी फ़ितरत में ही हो फ़रेब भरा,
उसको प्यार से गले लगाने से क्या।
जिसने घोषित किया खुद को ही है ख़ुदा,
उसको मस्ज़िद का रस्ता बताने से क्या।
जिसने आशा का दामन ही छोड़ दिया,
ऐसे डूबते जन को बचाने से क्या॥
#सन्तोष बाजपेई
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