हमारा देश अनादिकाल से ही हर क्षेत्र में स्वस्थ परम्पराओं , रीति -रिवाज और आपसी सद्भभाव का संवाहक रहा है जिसका प्रतिफल सदैव ही सकारात्मक रूप में हमारे सामने आया है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हमारी संस्कृति अन्य देशों के लिए भी आदर्श बनी है जिसके कई उदाहरण हम सब जानते हैं लेकिन बदलते समय ने अब हमारी इस संस्कृति को चिंताजनक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।
विरासत से चली आ रही इन संस्कृतियों , परम्पराओं पर ग्रहण लगता जा रहा है। साफ कहूँ तो अब हमारी संस्कृति धीरे -धीरे अपसंस्कृति में बदलती जा रही है । किसी पर भी इसका दोष मढ़ देना नाइंसाफी होगा । मेरी नजर में हम सब कहीं न कहीं इसके लिए दोषी हैं । इस दोष को वक्त रहते सुधारना होगा और अपनी संस्कृति को बचाना होगा।
हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई परम्पराओं के पीछे कोई न कोई आधार होता था । हर परम्परा सुख – समृद्धि का कारक होती है । सामाजिक , आर्थिक, धार्मिक और वैज्ञानिक तथ्य इनमें समाहित रहते हैं ।
आधुनिक युग में विभिन्न परेशानियों का हवाला देकर हम अपनी संस्कृति को अपने से विलग करते जा रहे हैं जो दुखदायी है।
परेशानियां तो पहले भी होती थीं पर तब मानसिक रूप से हमारे पूर्वज इनका निर्वाह करने के लिए तैयार होते थे । आज हमारी मानसिकता परिवर्तित होती जा रही है । इन परम्पराओं को हम रूढ़िवादिता बताकर नकारने लगे हैं जो घातक सिद्ध हो रही है।
आज इन्हें बचाने की सर्वाधिक जरूरत है। बदलते हुए इस समय में परम्पराओं को भी आधुनिकता का जामा पहनाया जा सकता है और उनका निर्वाह किया जा सकता है।
यदि हम ऐसा करने में सफल रहे तो यह हमारी युवा पीढ़ी की जड़ों को मजबूती प्रदान करेगी और विघटित होते जा रहे घर-परिवारों को बचाने में अपनी अहम भूमिका के रूप में ही सामने आएगी।
संक्षेप में इतना ही कहना चाहता हूँ कि हमारी गौरवशाली संस्कृति आज अपसंस्कृति में बदलती जा रही है जिसे बचाने के लिए हम सबको मन, वचन और कर्म से आगे आना ही होगा क्योंकि – हमारी परम्पराएं ही हमारी बिगड़ी हुई जीवन शैली को सुधार सकती हैं ।
#देवेंन्द्र सोनी,
इटारसी।
Read Time2 Minute, 59 Second