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डाले झोला घूम रहे जो,सत्ता के गलियारों में।
उनका सपना पहुँच बने बस,दिल्ली के दरबारों में॥
भूखे-नंगे जन को देना,वाणी उनका काम नहीं।
बैठे-बैठे वे सिर पीटें,छपा कहीं यदि नाम नहीं॥
वे तो केवल चाह रहे यह,छपें रोज अखबारों में।
डाले झोला घूम रहे जो….॥
चरण वंदना उनकी आदत,आगे-पीछे घूम रहे।
चाटुकारिता कर वे सबकी,मात्र नशे में झूम रहे॥
पद पैसा सम्मान चाहते,रोज करें गड़बड़ झाला।
ऐसे लोगों से कविता का,भला नहीं होने वाला॥
कौन करेगा गणना इनकी,सूरज-चाँद-सितारों में।
झोला डाले झूम रहे जो….॥
सत्ता को फटकार लगाएँ,उनकी ये औकात नहीं।
जनता को सब सत्य बताना,उनके बस की बात नहीं॥
सत्ता को खुश करने की ही,कोशिश उनकी रहती है।
शोषित वंचित की बात कभी,उनकी कलम न कहती है॥
उनके अक्षर नहीं बदलते,मित्र कभी अंगारों में।
झोला डाले घूम रहे जो सत्ता के गलियारों में॥
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
परिचय: डाॅ. बिपिन पाण्डेय की जन्मतिथि- ३१अगस्त १९६७ एवं जन्म स्थान-ग्राम रघुनाथपुर (ऐनी-ब्रम्हावली,औरंगाबाद)है।आप उत्तर प्रदेश राज्य के शहर-सीतापुर से सम्बन्ध रखते हैं। शिक्षा-एम.ए., एल.टी. और पी-एच.डी. है। आपका कार्यक्षेत्र-पी.जी.टी.(हिंदी)में अध्यापन है। लेखन में आपकी विधा पद्य (दोहा,कुंडलिया ,गीतिका)आदि सहित छंद बद्ध लेखन है। प्रकाशन में आपके नाम-कुंडलिनी लोक( साझा संकलन) तथा दोहा संगम(संपादित) है। सम्मान के रुप में कुंडलिनी रत्न सम्मान(लखनऊ)और दोहा शिरोमणि सम्मान खटीमा,उत्तराखंड) हासिल है। साथ ही आप ‘नेट’ एवं जेआरएफ़ पात्रता धारी भी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-स्वांतः सुखाय है।
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