नागवंश और नागपूजा

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drushti
(नागपंचमी विशेष)
एक जानकारी के मुताबिक उड़ने वाले सांपों की प्रजाति का पता चला है। दक्षिण अमेरिका में इस प्रकार की प्रजाति के सांप के फन अवशेष शोधकर्ताओं को प्राप्त हुए हैं। टेरासोर की नई  प्रजाति को `ऑलकारेन` नाम दिया गया। शोधकर्ताओं का प्रमुख उद्देश्य उड़ने वाले सांप समूह की उत्पति व विकास के बारे में नई जानकारी के साथ उनके मष्तिष्क की रचना को समझना आदि रहा हैl पूर्व में भी उड़ने वाले सांपों की प्रजाति मिली थी,जो क्रिसोपेलिया प्रजाति की पाई गई थी। ये सांप एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते समय अपने शरीर के आकार में परिवर्तन कर लेते हैंl एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाकर पहुँचते हैं,जिससे सभी को उड़ने का आभास होता है। भारत में भी कई प्रदेशों के अलावा वर्षा वनों में पेड़ों पर ये अपना बसेरा करते हैंl सांपों की बात करें तो,मणिधारी, इच्छाधारी,मूंछ वाले सांप तथा सात फन वाले आदि के बारे में कहानी-किस्से वर्षों से सुनते आ रहे हैं,मगर देखा किसी ने नहीं है। नागपंचमी को `सांपपंचमी` क्यों नहीं कहा जा सकता? सरीसृप प्रजाति के प्राणी को पूजा जाता है,वह सर्प है किन्तु नाग तो एक जाति है,जिनके सम्बन्ध मतानुसार अलग-अलग मत हैं-यक्षों की एक समकालीन जाति सर्प चिन्ह वाले नागों की थी,यह भी दक्षिण भारत में पनपी थी। नागों ने लंका के कुछ भागों पर ही नहीं,वरन प्राचीन मलाबार पर अधिकार जमा रखा था। रामायण में सुरसा को नागों की माता और समुद्र को उनका अधिष्ठान बताया गया है। महेंद्र और मैनाक पर्वतों की गुफाओं में भी नाग निवास करते थे। हनुमानजी द्वारा समुद्र लाँघने की घटना को नागों ने प्रत्यक्ष देखा था। नागों की स्त्रियाँ अपनी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध थी। रावण ने कई नाग कन्याओं का अपहरण किया था। प्राचीनकाल में विषकन्याओं का चलन भी कुछ ज्यादा ही था। इनसे शारीरिक संपर्क करने पर व्यक्ति की मौत हो जाती थी। ऐसी विषकन्याओं को राजा अपने राजमहल में शत्रुओं पर विजय पाने तथा षड्यंत्र का पता लगाने हेतु भी रखा करते थे। रावण ने नागों की राजधानी भोगवती नगरी पर आक्रमण करके वासुकि,तक्षक,शंक और जटी नामक प्रमुख नागों को परास्त किया था। कालान्तर में नाग जाति चेर जाति में विलीन हो गई,जो ईस्वी सन के प्रारम्भ में अधिक सम्पन्न हुई थी। 
नागपंचमी मनाने हेतु एक मत यह भी है कि,अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने तपस्या में लीन मैन ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दिया कि,यही सर्प सात दिनों के पश्चात तुम्हें जीवित होकर डस लेगाl ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा। तब क्रोधित होकर राजा परीक्षित के बेटे जन्मेजय ने विशाल `सर्प यज्ञ` किया,जिसमें सर्पों की आहुतियाँ दी। इस यज्ञ को रुकवाने हेतु महर्षि आस्तिक आगे आए। उनका आगे आने का कारण यह था कि,महर्षि आस्तिक के पिता आर्य और माता नागवंशी थी। इसी नाते से वे यज्ञ होते देख न देख सके। सर्प यज्ञ रुकवाने,लड़ाई को ख़त्म करके पुनः अच्छे सबंधों को बनाने हेतु आर्यों ने स्मृति स्वरूप अपने त्योहारों में `सर्प पूजा` को एक त्यौहार के रूप में मनाने की शुरुआत की। नागवंश से ताल्लुक रखने पर उसे नागपंचमी कहा जाने लगा होगा। मास्को के लेखक ग्रीम वागर्द लोविन ने प्राचीन `भारत का इतिहास` में नाग राजवंशों के बारे में बताया कि,मगध के प्रभुत्व के सुधार करने के लिए अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदय (४६१-ई.पू.)राजधानी को राजगृह से पाटलीपुत्र ले गया,जो प्राचीन भारत प्रमुख बन गया। अवंति शक्ति को बाद में राजा शिशुनाग के राज्यकाल में ध्वस्त किया गया था। एक अन्य राज शिशुनाग वंश का था।शिशु नागवंश का स्थान नन्द वंश (३४५ ई.पू.)ने लिया। भाव शतक में इसे धाराधीश बताया गया है,अर्थात नागों का वंश,राज्य उस समय धारा नगरी(वर्तमान में धार) तक विस्तृत थाl धाराधीश मुंज के अनुज और राजा भोज के पिता सिन्धुराज या सिंधुज ने विध्याटवी के नागवंशीय राजा शंखपाल की कन्या शशिप्रभा से विवाह किया था। इस कथानक पर परमारकालीन राजकवि परिमल पदमगुप्त ने `नवसाहसांक` चरित्र ग्रंथ की रचना की। मुंज का राज्यकाल १०वी शती ई.पू. का है,अतः इस काल तक नागों का विंध्य क्षेत्र में अस्तित्व था। नागवंश के अंतिम राजा गणपतिनाग थेl इस वंश की नाग जनजाति का नर्मदा घाटी में निवास स्थान होना बताया गया है।   हेययो ने नागों को वहां से उखाड़ फेंका था। कुषान  साम्राज्य के पतन के बाद नागों का पुनरोदय हुआ और ये `नवनाग` कहलाए। इनका राज्य मथुरा,विदिशा,कांतिपुरी (कुतवार),व पदमावती(पवैया)तक विस्तृत था। नागों ने अपने शासनकाल के दौरान जो सिक्के चलाए थे,उसमें सर्प के चित्र अंकित थे। इससे भी यह तथ्य प्रमाणित होता है कि,नागवंशीय राजा सर्प पूजक थे। शायद इसी पूजा की प्रथा को निरंतर रखने हेतु श्रावण शुक्ल की पंचमी को नागपंचमी का चलन रखा गया होगा। कुछ लोग नागदा नामक ग्राम को नागदाह से भी जोड़ते हैं। शायद यहीं पर सर्प यज्ञ हुआ होगा। नाग-नागिन की प्रतिमाएं और चबूतरे अधिकतर गांव में बने हुए हैं,इन्हें भिलट बाबा के नाम से भी पुकारा जाता है। उज्जैन में नागचंद्रेश्वर का मंदिर नागपंचमी के दिन ही खुलता है,व सर्प उद्यान भी है। खरगोन में नागलवाड़ी क्षेत्र में नागपंचमी के दिन मेला व सुसज्जित तरीके से भंडारा भी होता है। देखा जाए तो हर गांव-शहर में नाग मंदिर स्थपित है। सर्प दूध नहीं पीता है,इसलिए उनकी पूजा करना रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। सर्प कृषि मित्र भी है,वह फसलों को हानि पहुँचाने वाले जीवों से फसलों की रक्षा करता हैl 
                                                                                              #संजय वर्मा ‘दृष्टि’

परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।