नदी हूँ मैं

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kumari archana
नदी हूँ मैं,
सभ्यताओं को बसाती
और उनका उजाड़ती भी,
मिश्र में नील नदी बनके
हड़प्पा में सिन्धु नदी।
नदी हूँ मैं,
तोड़ दूँगी अपनी धारा को
लांघ जाऊँगी अपनी ही,
लक्ष्मण रेखा को।
नदी हूँ मैं,
देश सीमा में न बँधी
जिसे मैं पार न कर सकूँ,
सिन्धु,रावी व ब्रह्मपुत्र नदी
की बहती अमृत धारा हूँ।
नदी हूँ मैं,
कोई धर्म नहीं
जो संहिताबद्ध हो,
प्रकृति रूप में देवी समझ
पूजी-अर्चित की जाती हूँ,
इसलिए धरा पे पाप मिटाने
आपदा बन के प्रलय लाती हूँ।
नदी हूँ मैं,
कभी जीवनदायिनी बन जाती
तो कभी पापनाशिनी बन जाती,
कभी सरस्वती जैसी सूख जाती तो
कभी कोशी व गंगा जैसी बाढ़ लाती हूँ।
अरबों की जनसंख्या का,
गंदगी का बोझ उठाते-उठाते
मैं थक चुकी हूँ,
यूँ कहें कि, मैं हार चुकी हूँ
आखिर मैं छोटी नदी हूँ,
सागर तो नहीं
जो सब समाँ लूँ,
अपने तल में
सब निगल लूँ,
सब पचा लूँ
और डकार तक न करुं,
नदी हूँ मैं॥

                                                            #कुमारी अर्चना

परिचय: कुमारी अर्चना वर्तमान में राजनीतिक शास्त्र में शोधार्थी है। साथ ही लेखन जारी है यानि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर लिखती हैं। आप बिहार के जिला हरिश्चन्द्रपुर(पूर्णियाँ) की निवासी हैं।

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One thought on “नदी हूँ मैं

  1. १६-आने सच!
    पर,
    आप नदी हो इसलिए ही पूजी जाती हो।
    आप नदी हो इसलिए ही बहती जाती हो।
    आप नदी हो इसलिए ही सबकुछ सहती जाती हो।
    आप नदी हो इसलिए ही भगवान शिव के मस्तक पर धार्य हो।
    आप नदी हो इसलिये छोटी हो,
    पर आप छोटी होकर भी,
    कितनों जनों(कृषकों) की आस,
    इकलौती हो।

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