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उमड़-घुमड़ कर आई बदरिया,
लाज-शरम की ओढ़ी चदरिया।
सिमट-सिमट चली प्रेम डगरिया,
ज्यों की त्यों आ गई सांवरिया।
पल-भर में उड़ गई चुनरिया,
यौवन की भरपूर उमरिया।
उमड़-घुमड़ कर आई…॥
भोर भए फिर आई बांवरिया,
हांथन की दे-दे के थपकियां।
बांहन में भर गई सजनिया,
पल-भर में बीती दुपहरिया।
सपने बेचे भर-भर अंजुरिया,
रात न आँखन आई निंदिया।
उमड़-घुमड़ कर आई…॥
सावन का अहसास वो लाई,
मनभर का विश्वास वो लाई।
अपने अर्पण और समर्पण,
का सारा इतिहास वो लाई।
फिर वो आई,मन को भाई,
दिल की धड़कन भी सकुचाई।
थोडी़-सी लेकर अंगडा़ई,
मन-भर कर वो फिर मुस्काई।
उमड़-घुमड़ कर आई बदरिया॥
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।
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Sat Jul 15 , 2017
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