मन की पीड़ा

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arvind
न किसी से कुछ कह सकती,
न किसी से कुछ बता सकती।
काश़ ! आवाज दी होती परमात्मा ने,
तब, कुछ तो दर्द बयाँ कर पाती।
भर जाता दूध जब गाय के स्तन में,
पुकारती बछड़े को अपने,लगा लेती
थन में।
वह रमाती,हुँकारती,अपने बछड़े को निहारती,
बछड़ा भूखा होगा,सोचकर उसे दुलारती।
पर,ये निष्ठुर संवेदनाहीन मनुष्य तो देखो,
बछड़े को अलग कर,बाँध देता दूर,
उठा लाता बॉल्टी और दुह लेता दूध।
एक निरीह,बेबस,पशु माँ की लेता आह,
बेचता है गाय का दूध मँहगा,है पैसे की चाह।
ये है एक अबोध बालक,और सुबोध
माँ के ‘मन की पीड़ा’,
जिससे है अनजान मानव,सदियों से
चल रही जैसे कोई क्रीड़ा॥

                                                         #अरविंद ताम्रकार ‘सपना’

परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की  शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।

matruadmin

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