इंसान हूँ मैं,इंसान ही बनना चाहता हूँ।
कई आदर्श हैं इस जीवन के
फिर भी नहीं चाहता भगवान बनना॥
इंसान हूँ मैं इंसान ही बनना चाहता हूँ।
सब जन को है चाह देव बन पूजे जाएं।
पर इंसानों की खामियां कैसे कोई छिपाए॥
लोगों की इन खामियों पर कुछ कहना चाहता हूँ।
इंसान हूँ मैं इंसान ही बनना चाहता हूँ॥
कई ऐब है मुझमें भी,होगी कई खामियां भी।
छोडू मिटाऊँ कितनी ही,रहेगी कुछ तो फिर भी॥
इन ऐब खामियों को ही पहचान बनाना चाहता हूँ।
इंसान हूँ मैं इंसान ही बनना चाहता हूँ॥
कई दर्द है जीवन के,सहना तो जीवनभर है।
जीवन की जोत बुझेगी ही जीना आखिर तो है॥
फिर भी इसी जीवन-नद में बहना चाहता हूँ।
इंसान हूँ मैं इन्सान ही बनना चाहता हूँ॥
जीवन पार होता है गर कहीं उस पार स्वर्ग भी।
नहीं चाहिए स्वर्ग जो होता है गर कहीं मोक्ष भी॥
सदके इसी मृत्युलोक के मैं रहना चाहता हूँ।
इंसान हूँ मैं इंसान ही बनना चाहता हूँ॥
परिचय: दुर्गेश कुमार मेघवाल का निवास राजस्थान के बूंदी शहर में है।आपकी जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी है। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ली है और कार्यक्षेत्र भी शिक्षा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। विधा-काव्य है और इसके ज़रिए सोशल मीडिया पर बने हुए हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी की सेवा ,मन की सन्तुष्टि ,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है।