गहन गंभीर मालवा होता था

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rajesh Bhandari
शव शय्या पर हुवा जलाशय ,अब भी न्याय की आस हे
विनाश करे जो सरोवर का ,क्या यही विकास हे
खुनी आसू रो रहा जलाशय भरा लबालब था कभी
मूक दर्शक बने हुवे जो जिम्मेदार थे वो सभी
रसुब सत्ता के मद में तुम आततायी होने वालो
बूंद बूंद को तरसोगे तुम मत मुगालता कोई पालो
तुम से तो राजा अच्छे थे जो जनता के सेवक सच्चे थे
पर्यावरण के रखवाले थे नहीं तुम जेसे विष वाले थे
जलाशय की रखवाली करते थे
पानी की रक्छा के लिए मरते थे
सरकारी जमींन खाली  रखते थे
सारे पशुधन उस पर चरते थे
जलाशय में  पानी होता था
गहन गंभीर मालवा होता था
फिर ना जाने क्यों आजादी आयी
खुब मनमानी और बर्बादी लायी
काकड़ गोये राजनीती की बलि चड़े
चोकीदार और नेता उनपर टूट पड़े
पशुपालन की जो थी जमीन
उसका मालिक बन बेठा अमिन
मनमाने निर्णयों में पर्यावरण को खाया हे
बिना पेड़ के आया सब पर मोत का साया हे
षडयंत्र करके जलाशयों को  तोडा   हे
गहरा करने के नाम पर उनका पेंदा फोड़ा हे
जब खाली जलाशय शव शय्या पर थे पड़े
भू माफिया और छुट भय्या उस पर टूट पड़े
कंक्रीट का जंगल बेचारे तालाबो पर बन गया
जीवन दान देने वाला जलाशय शमशान बन गया
जलचर जानवरों की आत्मा वहा बिलखती हे
परियो और राहगीरों की रूहे वहा सुलगती हे
फिर कुवे बावड़ियो का नम्बर आया
अल्टरनेटिव में उनके हेंडपंप को लगवाया
जलाशय सूखने से बावडियो के पेंदे सूखे
हेंड पंप चला चलाके बहनों के पेडू दुखे
जब पर्यावरण की वाट लगा डाली
तो पानी के स्रोत हो गये सब खाली
जंगलो और खेतो में सड़के जब बनवाई
खेती बाड़ी को भी मशीनों के मोहताज बनाई
विदेशी दवाई और खाद देश में जब घुस आया
साथ में ढेरो बीमारी और कुपोषण ले आया
पहले जो ब्लड टेस्ट में भी  था घबराता
अब ख़ुशी ख़ुशी वो हार्ट सर्जरी करवाता
सारी कमाई घुस जाती हे साबुन और दवाओ में
फिर भी इंसान जिन्दा हे सपनो और हवाओ में

#राजेश भंडारी “बाबू”

इंदौर(मध्यप्रदेश)

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