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यारों आपकी दुआओं में हमें याद किया करो।
नियति सुख में भूल, गमों में याद किया करो॥
अक्सर जब गम-ए-लम्हें नागिन बनके डंसते हैं।
कुछ न सोचो, न डरो,जरा मदिरा पिया करो॥
यार छूटे, प्यार टूटे, दिल के टुकड़े हो जाए।
डरना न कभी, काम हिम्मत से लिया करो॥
जीना ही दुश्वार बन जाए, गैरों के बीच में।
हार न मानते सब सहते, सब्र से जिया करो॥
शायद उनकी नजरों में हम गुनाहगार ठहरे।
फिर भी वक्त से बेगुनाह साबित किया करो॥
प्रायः कभी-कभी अपनों में दूरियाँ पैदा हो।
अपनों के रास्ते जिगर निकाल रखा करो॥
ऐ नादान तुम्हारी कोई फिक्र करे या न करे।
चलते चार दिन तुम सब रिश्ते निभाया करो॥
बेवक्त कभी गम-ए-लम्हें पहाड़-सी बुनते जाए।
जब असंभव लगे, ऊपरवाले का नाम लिया करो॥
#डॉ. सुनील कुमार परीट
परिचय : डॉ. सुनील कुमार परीट की जन्मतिथि-१ जनवरी १९७९ तथा जन्म स्थान-कर्नाटक का चंदूर गांव है। आप कर्नाटक राज्य के शहर-बेलगांव से हैं। शिक्षा में आपके पास एम.ए.,एम.फिल., बी.एड.(हिन्दी) सहित पीजीडीटीए और पीएचडी की उपाधि है। बतौर हिन्दी अध्यापक आप कार्यरत हैं। सामाजिक क्षेत्र में पर्यावरण रक्षा,गौमाता रक्षा और गरीब छात्रों को सहायता के लिए सक्रिय रहते हैं। आपकी लेखन विधा-कविता, लघुकथा, कहानी,लेख और समीक्षा है। ५ किताबें प्रकाशित हुई हैं और ८० से अधिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त किए हैं। उपलब्धि यही है कि,कर्नाटक जैसे अहिन्दी भाषी प्रदेश में आप १४ साल से हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। लेखन का उद्देश्य-‘स्वांत सुखाय जन हिताय’ है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं।
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