मत लगाओ प्रश्नवाचक चिन्ह मेरे आँसूओं पर,
आह में परिणित हुए सपने विसर्जित हो रहे हैंl
हाँ सजाए थे कभी हमने भी सपने प्यार के,
देख डाले फिर यहाँ सारे नियम संसार के
प्रेम से रहने की सबको सब नसीहत दे रहे,
किंतु हैं विपरीत मानक प्रेम के अधिकार केl
पुण्य से भी लग रहा है पाप अर्जित हो रहे हैं,
आह में परिणित हुए सपने विसर्जित हो रहे हैंl
कुछ हमें भी मिल न पाया प्रीति की गुंजार से,
पर बहुत कुछ मिल गया है इस प्रणय हार से
दर्द भागीरथ बना है प्रेम के परलोक में,
अश्रु की भागीरथी है अवतरित दृग द्वार सेl
मन क्षितिज में वेदना के स्वर गर्जित हो रहे हैं,
आह में परिणित हुए सपने विसर्जित हो रहे हैंll
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।