आस रहती है

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न खुशी की कोई लहर,
हमे आगे दिखती है।
जीवन और मृत्यु का डर,
अब हमें नहीं लगता है।
बस एक आस दिल में,
सदा हम रखते है।
अकाल मृत्यु न हो,
इस काल में।।

न कर पाते क्रिया कर्म,
न बेटा निभा पाते धर्म।
अनाथो की तरह से,
किया जाता अंतिम क्रियाकर्म।
न उनको चैन मिलता है,
न परिवारवालो को शांति।
मुक्ति पाई भी तो,
बिना लोगो के कंधों से।।

किये होंगे पूर्वभव में,
कुछ उसने बुरे कर्म।
तभी इस तरह से,
उसे मिली है मुक्ति।
इसलिए मैं कहता हूँ,
करो अच्छे कर्म तुम।
और सार्थक जीवन जीकर,
पाओ अपनी मुक्ति को।।

जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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