एक पेड़ था। धूप से उसके सारे पत्ते झुलस गए थे। जेठ की दुपहरी का कड़क तूफान…दो पत्तों मे पक्की मित्रता थी। एक धूप में तपकर सिहरते हुए अपने साथी से बोला-‘भाई! अब मैं मर जाऊँगा। जीवन में इतनी तपन है, मुझे नहीं मालूम था।’
दूसरा पत्ता मुस्कुराते हुए बोला-‘मरने की बात मत करो मित्र। इस दुख के बाद मनोरम सुख आएगा। धीर धरो। दुख को देखकर जो रोता है वह कायर होता है।जो कायर होता है वही दुखद समय में आत्महत्या करने की सोचता है। हम कायर नहीं,अपितु वह हिमालय हैं जो अगणित कष्टों को सहते हुए भी भारत माँ की सेवा करता है और शान से जीता है।’
मित्र के उपदेश को सुनकर वह गहरी साँस लेते हुए कुम्हलाकर बोला-‘यार ! तुम जो कह रहे हो वह कवियों की कल्पना है, बस! यथार्थ और कल्पना में जमीन आसमान का अन्तर होता है। इस जीवन को जीने से क्या फायदा जिसमें दु:ख ही दु:ख है। एक तो सुबह से ही धूप में जल रहे थे दूसरे यह तूफान भी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गया। हे भगवान ! अब मर जाने में ही कल्याण है।’
निराश मित्र के कानों में उमंग की तरंग उड़ेलते हुए उदात्तवादी मित्र बोला-‘ऐ बहादुर दोस्त! हँसते-हँसते दुख को झेलना ही जीवन है। दु:ख में सुख की अनुभूति करना ही जीवन है। यथार्थ जीवन के उपवन को सजाने-सँवारने का काम करती है कल्पना। कल्पना आविष्कारों की माँ होती है। यदि आदमी का पाव मंगल ग्रह पर पड़ा है, तो यह कल्पना का ही चमत्कार है। सागर में सैर करना और आकाश में उड़ना भी कल्पना से ही सम्भव हुआ है। कल्पना के साथ कर्म को मिलाते ही अजीब चमत्कार होता है मेरे मित्र ! हम तो अभी सुखद स्थान पर हैं। उन वृक्षों को देखो जो पर्वत की चोटी को चीरकर अपना भोज्य पदार्थ संग्रह करते हैं। झिलमिलाते धूप में भी लहराते हुए मुस्कुराते हैं। उन पर अग्निवर्षा होती है, फिर भी उनकी हरियाली नहीं जाती है।इस तूफान की क्या मजाल,जो हमें तोड़ दे।’
मित्र की ओजस्वी बातों को सुनकर मुरझाया हुआ पत्ता मुस्कुराते हुए टन् से बोला-‘क्या हम में भी तूफां से संघर्ष करने की शक्ति है ?’
‘और नहीं तो क्या। हम किससे कम हैं!!हमें खुद को इतना फौलाद बनाना चाहिए कि, हमसे टकराना तो दूर,पास आने से पहले ही दुश्मनों के पाँव उखड़ जाएँ।
‘अच्छा! तो अब यह तूफां मेरा बाल भी बाँका नहीं कर पाएगा।’ -ऐसा कहते हुए वह मजबूती से उसने स्वयं को स्थापित कर लिया। वृक्ष के तमाम पत्ते तूफान से पराजित होकर जीवन से हाथ धोते हुए धरा पर बिखरते गए। एक-से-एक कायर मजबूत कायाओं को धराशाई होते हुए देखता गया। चिलचिलाती धूप में आवारा पवन तांडव नृत्य करती रही, लेकिन दोनों दोस्त एक-दूजे की हौंसला अफजाई करते रहे। धीरे-धीरे समय का पहिया घूमता गया। हँसते-खेलते, कष्टों को झेलते हुए पता नहीं कब वक्त गुजर गया। ज्यों-ज्यों दिन ढलता गया,मौसम शान्त होता गया। सूर्यास्त के बाद चंद्रोदय हुआ। कड़क धूप से झुलसे दोनों दोस्त ने चमचमाती चाँदनी के शीतल सागर में स्नान किया तो जी हल्का हुआ। दशो-दिशाओं से सुरीली खग-गायिकाओं का आगमन हुआ। रातभर संगीत के सप्त सुरों के दरिया में गोता लगाते हुए दोनों सुख चैन से सोए। दुखद दिन के बाद सुखद रात आई। रात बीती, पुन: सूर्योदय हुआ और फौलादी अंदाज में दोनों वीर संघर्ष के लिए तैयार हो गए।यही जीवन है…।
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
परिचय : सुनील चौरसिया ‘सावन’ की जन्मतिथि-५ अगस्त १९९३ और जन्म स्थान-ग्राम अमवा बाजार(जिला-कुशी नगर, उप्र)है। वर्तमान में आप काशीवासी हैं। कुशी नगर में हाईस्कूल तक की शिक्षा लेकर बी.ए.,एम.ए.(हिन्दी) सहित बीएड भी किया हुआ है। इसके अलावा डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन,एनसीसी, स्काउट गाइड, एनएसएस आदि भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन,लेखन,गायन एवं मंचीय काव्यपाठ है तो सामाजिक क्षेत्र में नर सेवा नारायण सेवा की दृष्टि से यथा सामर्थ्य समाजसेवा में सक्रिय हैं। विधा-कविता,कहानी,लघुकथा,गीत, संस्मरण, डायरी और निबन्ध आदि है। अन्य उपलब्धियों में स्वर्ण-रजत पदक विजेता हैं तो राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले मॉरीशस, इंग्लैंड,दुबई,ओमान और आस्ट्रेलिया आदि सोलह देशों के साहित्यकारों एवं सम्माननीय विदूषियों-विद्वानों के साथ काव्यपाठ एवं विचार विमर्श शामिल है। मासिक पत्रिका के उप-सम्पादक भी हैं। लेखन का उद्देश्य ज्ञान की गंगा बहाते हुए मुरझाए हुए जीवन को कुसुम-सा खिलाना, सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार कर सकारात्मक सोच को पल्लवित-पुष्पित करना,स्वान्त:सुखाय एवं लोक कल्याण करना है। श्री चौरसिया की रचनाएँ कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।