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हम तुम बने हैं रेल की पटरी की तरह।
चलेंगे साथ-साथ,फिर भी न मिलेंगे कभी॥
तकदीर का तमाशा कौन जान पाया है।
खिजां के फूल हैं क्या हम खिलेंगे कभी॥
कुछ बेहतर ही होगा जो खामोश रहा करते हैं।
किया है वादा न अब होंठ हिलेंगे कभी॥
यूँ तो बातें हजार हमको तुमको करनी है।
मिलेंगे जब आँखों से हर बात कर लेंगे कभी॥
खुद से खफा हैं हम न जाने किस बात पर।
बदला ‘अमित’ एक दिन खुद से ही लेंगे कभी॥
#अमित शुक्ला
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