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नौ मास उदरी में गुदरी,
तुम भी क्या रख सकते हो?
पाँच किलो का पीठ पे बोझा,
बाँध पैदल क्या चल सकते हो ?
माँ है वह यह काम जो करती ,
तुम भी क्या यह कर सकते हो ?
माँ की ममता के लिए मात्र,
क्या दो दिन भूखा रह सकते हो ?
चलो चिमनियों पर दिखलाऊँ,
माँ की ममता की एक झाँकी।
भूखी-प्यासी पत्थर तोड़े,
पेट-पीठ पर बालक बांधे॥
खुद खाती नहीं,खिलाती है,
अपने नन्हें-मुन्ने को।
अपनी माँ के लिए क्या तुम,
बिना खाए रह सकते हो ?
पाल-पोसकर तुम्हें पढ़ाया,
अपना शौक ताक पर रखकर।
माँ की देन के साहब हो तुम,
फिकर माँ की कभी करते हो ?
मेहरी के मोह माया में,
भूल गया तू उस ममता क़ो।
जिसने हाट से गुड़िया लाई ,
जिस पर जान छिड़कते हो ?
जिस माँ की सेवा नहीं होती,
माँ, भूखी रोती सोती है।
उसके बच्चे वही देखकर,
कल करें, क्यों डरते हो ?
माँ-बापू की सेवा मेवा,
तप तीरथ व्रत मन्दिर है।
अपने बच्चों के लिए ही,
अच्छे बाप तो बन सकते हो ?
बढ़े पूत नाती पोता ,
माँ मुख से दुआ निकलती है।
माँ की सेवा करके ‘भवन’,
अच्छा बेटा बन सकते हो ?
#रामभवन प्रसाद चौरसिया
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।
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