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झांका उन्हें मैंने अपने गलियारे से,
इसकी भी कोई वजह होगी।
उन्होंने तो बस इतना कहा,
मैं तुम्हें जानता ही नहीं।
शायद इसकी भी कोई वजह होगी।
मैं तो इंतजार आज भी करता हूँ उनका,
शायद कोई तो वजह होगी।
निहारती है आज भी आंखे राहें,
शायद तो कोई वजह होगी।
वो तो गम देकर चले अपनी मंजिल,
उनकी भी कोई वजह होगी।
हम तो मंजिल से भी लौटने के आशां लिए,
खड़ा हूँ क्या इसलिए या ये भी बेवजह होगी।
#प्रभात कुमार दुबे (प्रबुद्ध कश्यप)
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