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आराधना
ईश्वर की करो,
अपने जीवन
को सफल करो।
गृहस्थ आश्रम
जीवन का परिश्रम,
जीवन से मृत्यु तक
इन्सान का जीवन,
सबसे सुन्दर है
जीवन का बचपन।
बचपन में बच्चों को
सिखाओ वही सीखते हैं,
माता-पिता का
अनुसरण करते हैं,
शिक्षा दो जैसी
वैसा वो सीखते हैं।
बचपन का जीवन है
बड़ा ही भोला-भाला,
यही जीवन तो
अजब है निराला।
ईश्वर की इच्छा के
यही पल निराले हैं,
बच्चे तो बच्चे हैं,
बस भोले-भाले हैं।
ईश्वर आराधना
उनको सिखाओ,
ईश्वर में लगन रखें
पाठ ये पढ़ाओ।
माता-पिता का
फर्ज यही बनता है,
ईश्वर आराधना से
मन शुद्ध रहता है,
सच और सही
मार्ग भी मिलता है,
जीवन की सफलता
का मोक्ष द्वार खुलता है।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Wed Aug 2 , 2017
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