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बिखर रहे क्यों देह धर्म से,
आत्म धर्म से एक बनो तुम..
परिजन तेरे प्रभु सेवा को,
सेवामय सब कार्य करो तुम..
नहीं देह का नाता जग से,
श्री हरि से ही सब नाते हैं॥
सभी चराचर प्रभु शरीर हैं,
उसके हेतु कार्य करो तुम..
विषम दृष्टि से मत देखो तुम,
यह तो श्रीहरि की क्रीड़ा है..
लड़ना मरना राग-द्वेष तो,
निज मन से पनपी पीड़ा है..
नहीं देह का नाता जग से ,
श्रीहरि से ही सब नाते हैं॥
आत्म धर्म से एक ही हो तुम,
वल्लभ दर्शित कर्म करो तुम..
प्रभु के नाते सब अपने हैं,
नहीं पराया और वीराना..
स्मरण करो तुम सभी व्रती हो,
सेवामय पर कर्म करो तुम..
नहीं देह धर्म का नाता जग से,
श्रीहरि से ही सब नाते हैं।
श्रीहरि से ही सब नाते हैं॥
#विनय पान्डेय
परिचय : विनय पान्डेय मध्यप्रदेश के कटनी में रहते हैं। आपका व्यवसाय पान्डेय ग्रुप आफ कम्पनीज प्राईवेट लि. है। एमबीए की शिक्षा पा चुके श्री पाण्डेय की विशेष रूचि मुक्तक,छंद, ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। उपलब्धियों की बात करें तो,कवि सम्मेलन और मुशायरा समूह का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। कई पत्रिका एवं समाचार-पत्र में कविताएँ प्रकाशित होती हैं।
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