२ ‘जी’ की शक्ति

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aashutosh
कल सुबह मेरे एक मित्र का फ़ोन आया,बोले- भाई घर आओ। एक सिद्ध पुरुष के दर्शन करवाता हूँ।
प्रसिद्धि के इस दौर में जहाँ सिद्ध ढूँढने से भी नहीं मिलते,मैं आनंद से भरा हुआ ठीक साढ़े दस बजे अपने मित्र के घर, उन विद्वान पुरुष के सम्मुख था।
वे पद्मासन लगाए हुए, अपनी आँखों को ‘स्वयं की नाक की नोक पर’ केन्द्रित किए हुए ध्यानस्थ मुद्रा में बैठे थे।
पच्चीस-तीस आपसी दोस्त भी थे-सभी सावधान की मुद्रा में मेरुदंड को सीधा रखकर बैठे हुए थे। वातावरण में समुद्र की-सी शांति थी, परिणामस्वरूप मेरे मित्रों ने मेरी हैलो का जवाब, मात्र अपनी पलकों को झपका कर दिया।
पता चला कि ये वर्ग, वर्ण,ज़ात-पात को ना मानने वाले क्रांतिकारी पुरुष हैं। इन्होंने अर्थ, धर्म,काम,मोक्ष को ही नहीं-काम,क्रोध,मद, लोभ को भी साधा हुआ है। एक दिव्य स्मित उनके चेहरे पर स्थाई रूप से विराजमान थी। मेरे मित्र उनके सम्पर्क में पिछले दस वर्षों से हैं-किंतु वे सिद्धपुरुष कहाँ के हैं, क्या उम्र है,कहाँ तक पढ़े हैं?,इसकी कोई भी पुख़्ता जानकारी मेरे मित्र को नहीं थी,लेकिन उनके तपोनिष्ठ होने,हिमालय आदि में वर्षों साधना करने,उनके परम ज्ञानी होने के,और उनसे जुड़ी विस्मयाभूत करने वाली कई चमत्कारी कहानियों का उनके पास ज़ख़ीरा था।
दिव्यता की आभा से दमकते हुए उस व्यक्तित्व की उम्र का मैंने अंदाज़ा लगाते हुए अपने मित्र से फुसफुसाते हुए कहा कि- स्वामी जी क़रीब चालीस वर्ष के होंगे? वह अभिभूत होते हुए बोले- नहीं भाई,कोई कहता है कि,सवा सौ साल के हैं, कोई कहता है तीन सौ को पार कर चुके हैं,और कुछ लोग तो बताते हैं कि,इनकी उम्र मात्र सोलह वर्ष की है।
मैं चमत्कृत भाव से उन क्लीन शेव्ड चिरयुवा को फिर से देखने लगा। तभी मेरे मित्र ने आँखों के इशारे से उनके बाज़ू में बैठे हुए एक और स्थूलकाय भद्र विभूति की ओर इंगित करते हुए कहा-भाई ये ही इनकी सेवा में पिछले साठ साल से हैं।
अपने मित्र की अतार्किक किंतु श्रद्धा और भक्ति से युक्त बात सुन के मैं स्वयं भी अविश्वासपूर्ण श्रृद्धा से झुक गया,मैंने महसूस किया कि,मेरे दोनों हाथ स्वतः ही प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गए। मुझे प्रणाम करता देख उन दोनों की चार चमत्कारी आँखें मेरी दो चमत्कृत आँखों से टकराकर छह हो गईं। उनकी आँखों के तेज़ और चेहरे के भाव से मुझे लगा,जैसे उन्होंने हम दोनों मित्रों की फुसफुसाहट में हुई पूरी बातचीत सुन ली है। मैं अपने द्वारा अनजाने में हुई अशिष्टता के अपराध बोध से भर गया,क्योंकि पच्चीस-पचास लोग होने के बाद भी सभी उनकी अनुपम छटा के अनुशासन से बंधे बिलकुल शांत सम्मोहित से बैठे थे,माहौल में सुई पटक सन्नाटा था। ये सन्नाटा बिलकुल वैसा ही था,जैसे किसी दिवंगत आत्मा के सम्मान में दो मिनिट के मौन के समय होता है।
मैंने मित्र की तरफ़ इस भाव से देखा कि,अब क्या करना है? सिर्फ़ दर्शन लाभ ही हैं या श्रवण का सुख भी मिलेगा? मित्र मेरे मन की बात समझ गया,और बहुत धीरे से बोला-ठीक ग्यारह बजे बोलने का मुहूर्त है। और तभी दीवार घड़ी ने टनटनाते हुए ग्यारह बजने की घोषणा की।
घड़ी की आख़िरी टन्न के बाद सिद्ध पुरुष ने अपने धीर गम्भीर स्वर में पहला शब्द ‘ॐ’ उच्चारित किया। ॐ के उच्चारण को सुनते ही उनके बाज़ू में बैठे स्थूलकाय भद्र पुरुष ने ज़ोर से तालियाँ बजाना शुरू कर दिया, कुछ न समझते हुए हम सब भी तालियाँ पीटने लगे।
अपनी तेजवान दृष्टि उपस्थित जनसमुदाय पर डालते हुए वे दिव्य पुरुष बोले-‘तुम लोग सभी बातों से ध्यान हटाकर मात्र ‘जी’ पर ध्यान लगाओ। जी बड़ा चमत्कारी शब्द है,यह ‘ॐ’ से भी ज़्यादा पावरफ़ुल है। जी फ़ॉर जिगर,जी फ़ॉर गॉड,जी फ़ॉर गुड्ज़। अपना जी यानि जिगर लगाओगे तो जी यानि गॉड मिलेंगे,गॉड मिले तो गुड्ज़ अपने आप मिल जाएँगे। जी फ़ॉर गॉड को पाना इतना आसान नहीं है,इसके लिए तुम्हें ‘एस’ फ़ॉर साइलेंट होना पड़ेगा, तुम्हारा ‘एस’ फ़ॉर साइलेंट होना ही ‘टी’ फ़ॉर तपस्या है। ऐसा नहीं है कि,तुमने अपना ध्यान जी  पर नहीं लगाया,लगाया है। तुम हमेशा ही अपना जिगर गॉड और गुड्ज़ में लगाए रहे हो,लेकिन ऐसा क्या हुआ कि,इसके बाद भी तुम एस फ़ॉर साइलेंट ना होकर एस फ़ॉर शोर करने लगे? जिससे तुम्हारा ‘टी’ फ़ॉर तपस्या न होकर,टी फ़ॉर ट्रबल हो गया?
ध्यान रखो,ब्रह्मांड में सिर्फ़ वन ‘जी’ ही होता है, और तुम लोग उसे भूल कर कभी टू जी,कभी थ्री जी के चक्कर में पड़े रहे और उससे भी तुम्हारा मन नहीं भरा,तो अब फ़ोर जी के लपेटे में आ गए हो। तुम्हारे इसी शोर-शराबे और ट्रबल के कारण तुमको न तो जी  फ़ॉर गॉड मिले और ना ही जी फ़ॉर गुड्ज़।
एक और भूल तुमने की, जिस जी को तुम्हें आगे लगाना चाहिए था,उसे तुमने ए-जी,ओ-जी,2जी, 3जी,4जी करके पीछे लगा दिया।
मेरे प्यारे बच्चों,जी फ़ॉर गॉड तो अपने आगे लगाने के लिए होता है, इसलिए आज से तुम सभी ‘जी’ को आगे लगाओ तो तुम देखोगे की तुम्हें एस फ़ॉर साइलेन्स ही नहीं,एस फ़ॉर शांति भी मिलेगी और तुम्हारा ‘टी’ फ़ॉर ट्रबल,टी फ़ॉर ‘थ्रिल’ में बदल जाएगा।
अपने देश में पत्नि अपने पति को बुलाने के लिए ‘ओजी की आवाज़ लगाती है जो आग्रह है, आदेश है,ये अक्सर अशांति का कारक होता है-अब ‘ओ’ के पीछे लगे ‘जी’ को उसके आगे करके देखो। तुम देखोगे कि,वह चमत्कारी रूप से आशीर्वाद का रूप लेकर ‘जीओ’ हो जाता है। आसमानी सफलता आशा पर नहीं,आशीर्वाद पर टिकी होती है। मेरा आशीर्वाद सदा तुम लोगों के साथ है,ख़ूब ‘जीओ’ मेरे बच्चों।
ये कहकर उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं और ॐ जीएसटी  ॐ की ध्वनि के साथ वे गहरी समाधि में लीन हो गए। अचानक मेरे मित्र का घर ध्वनिरहित पटाखों की रोशनी से जगमगाने लगा, जिनकी रोशनी से हम सभी के चेहरे आलोकित होने लगे। हृदय हर्ष से भरा हुआ था,क्योंकि अब मन को त्राण से मुक्त करने वाला बीजमंत्र खोजा जा चुका था।
                                                                                               #आशुतोष राणा
परिचय: भारतीय फिल्म अभिनेता के रूप में आशुतोष राणा आज लोकप्रिय चेहरा हैं।आप हिन्दी फिल्मों के अलावा तमिल,तेलुगु,मराठी,दक्षिण भारतऔर कन्नड़ की फिल्मों में भीसक्रिय हैं। आशुतोष राणा रामनारायण नीखरा उर्फ़ आशुतोष राणा का जन्म१० नवंबर १९६४ को नरसिंह के गाडरवारा यानी मध्यप्रदेश में हुआ था। अपनी शुरुआती पढ़ाई यहीं से की है, तत्पश्चात डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से भी शिक्षा ली हैl वह अपने महाविद्यालय के दिनों में ही रामलीला में रावण का किरदार निभाया करते थे। प्रसिद्ध अभिनेत्री रेणुका शाहने से विवाह करने वाले श्री राणा ने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत छोटे पर्दे से की थी। आपने प्रस्तोता के रूप में छोटे पर्दे पर काफी प्रसिद्धी वाला काम किया। हिन्दी सिनेमा में आपने साल १९९५ मेंप्रवेश किया था। इन्हें सिनेमा में पहचान काजोल अभिनीत फिल्म`दुश्मन` से मिली। इस फिल्म में राणा ने मानसिक रूप से पागल हत्यारे की भूमिका अदा की थी।आध्यात्मिक भावना के प्रबल पक्षधर श्री राणा की ख़ास बात यह है कि,दक्षिण की फिल्मों में भी अभिनय करने के कारण यह दक्षिण में `जीवा` नाम से विख्यात हैं। `संघर्ष` फिल्म में भी आपके अभिनय को काफी लोकप्रियता मिली थी| लेखन आपका एक अलग ही शौक है,और कई विषयों पर कलम चलाते रहते हैं|

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3 thoughts on “२ ‘जी’ की शक्ति

  1. हमें ख़ुशी हैं की आशुतोष जी और मेरी रचना एक ही पोर्टल पर है धन्यवाद् सर

  2. Thanks sir aap iss portal par humse jude h bahut khushi hui jinko humne villen k roop mein dekha aaz lekhak aur vicharak k roop mein delhna shukhad h thanks again

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