यह शांत मन यह निशांत मन।
छुपाता बहुत कुछ जनता मन।
यह ज्ञान मन यह विज्ञान मन ।
जानता बहुत कुछ नादान मन ।
यह अंबर मन यह गगन मन ।
उठता बहुत झुक जाता मन।
यह नीर मन यह निर्मल मन ।
थमता बहुत बह जाता मन ।
यह निस्तब्ध मन यह स्तब्ध मन।
चुप रहकर कुछ कह जाता मन।
यह हर्षित मन यह पुलकित मन।
आनंदित हो नीर बहाता मन ।
यह आशा मन यह अभिलाषा मन ।
ख़ुश हो मन मसोश रह जाता मन ।
#विवेक दुबे
परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।