रिमझिम फुहार

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rachana sacsena
न कहीं धूप,न कहीं अब छाँव है, 
दिख रही  रिमझिम फुहार है।
 
बगीचे तले डाली-डाली फूल झूमे,
आपस में लिपट-लिपट गाल चूमे..
तितलियाँ रँगीली इधर-उधर घूमे,
डालियाँ लताएं भी सारे गम भूलेl 
 
क्यारियों में डूबे जहाँ सूखे पाँव है,
वहीं दिख रही रिमझिम फुहार है।
 
सड़कों पर भी छतरी नीचे जोड़ियाँ,
प्रेमरंग खेल खेलें,आपस में होलियाँ..
भीगी-भीगी काली झूमती चोटियाँ,
छपछपाती पानी में उनकी जूतियाँ,
 
एक-दूजे खोए जहाँ प्यासे भाव हैं,
वहीं दिख रही रिमझिम फुहार है।
 
अपना भीे ये नाजुक मन बेचैन  है,
न कटे दिन और न कटे अब रैन है..
रूठा है प्रेम बस विचारों का मेल है,
डबडबाते आँसू और गीले दो नैन हैl 
 
पलकों नीचे तैरती पुतलियाँ नाव है,
वहीं दिख रही रिमझिम फुहार है।
                                                                                               #रचना सक्सेना

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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