Read Time1 Minute, 14 Second
आ भी जा पास अब मेरे मोहन।
अब तुझे टेरने लगा है मन॥
रात काली डरा रही है हमें।
बिन तुम्हारे नहीं कटे जीवन॥
राधिका आ बसो भवन मेरे।
है सुहाना बड़ा सुघड़ आँगन॥
वक्त करवट बदल रहा है यूँ।
ग्रीष्म के बाद आ गया सावन॥
सांवरा बस रहा खयालों में।
स्वप्न में देखती रहूँ मधुबन॥
आज गउएँ पुकारतीं तुझको।
बन रहीं आज वे स्वयं भोजन॥
टेर द्रुपदा की थी सुनी तूने।
हर गली आज फिरें दुर्योधन॥
बन गई आज नदी नाले-सी।
नीर यमुना नहीं रहा पावन॥
एक यदि भू विलास हो तेरा।
तो बचें वृक्ष नीर औ गोधन॥
#डॉ. रंजना वर्मा
परिचय : डॉ. रंजना वर्मा का जन्म १५ जनवरी १९५२ का है और आप फैज़ाबाद(उ.प्र.) के मुगलपुरा(हैदरगंज वार्ड) की मूल निवासी हैंl आप वर्तमान में पूना के हिन्जेवाड़ी स्थित मरुंजी विलेज( महाराष्ट्र)में आसीन हैंl आप लेखन में नवगीत अधिक रचती हैंl
Post Views:
508