हमको हमारे दुख का ये एहसास न होता,
साँसों की महक तेरी मेरे सांस में होती।
बनता नहीं शायर न यू मैं करता शायरी,
बिछुड़ा जो मेरा तुम-सा कोई खास न होता।
आँखों में आँसू बनके दर्द बहते ही गए,
पूछा जो किसी ने तो ये कहते ही गए।
मुझको न जलाती तो फिर ये प्यास न होती,
हमको हमारे दुख का ये एहसास न होता।
वो चल दिए थे ऐसे जैसे झोंका हवा का,
दर्दों को मेरे न थी जरुरत भी दवा की।
हो मित्र आप जैसे कहाँ शत्रु की कमी,
हंसते ही रहे देख मेरी आँख की नमी।
तू भूलकर भी जो हमारे पास न होता,
हमको हमारे दुख का ये…।
बरसात के दिनों में वो जो नाव बनी थी,
पानी के थपेड़ों से वो भी डूब गई थी।
धरती को मोहब्बत का ये एहसास न होता,
बाँहों में थामें उसको जो आकाश न होता।
हमको हमारे दुख का ये एहसास न होता।
साँसों की महक…।
#अजय एहसास
परिचय : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सुलेमपुर परसावां (जिला आम्बेडकर नगर) में अजय एहसास रहते हैं। आपका कार्यस्थल आम्बेडकर नगर ही है। निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ हिन्दी भाषा के विकास एवं हिन्दी साहित्य के प्रति आप समर्पित हैं।