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किसी ने देखा नहीं अस्ल में चेहरा अपना,
सबको एजाज़ दिखाता है आइना अपना।
मज़ीद सरफिरे लोगों ने बना ली सरहद,
भूलकर आदमी से आदमी रिश्ता अपना।
फैसले क्या है हमारी ही कम ख्याली है,
हमने तो सोचा नहीं खुद कभी सोचा अपना।
वो भी अब नुक्ताचीं हो गए बुलंदी के,
पढ़ नहीं सकते जो लोग खुद लिखा अपना।
हमने तो चूजों-सा पाला है अपने ख़्वाबों को,
बुना है मुश्किलों से लड़ के घोंसला अपना।
अच्छा है आप भी दुश्मन से पेश आने लगे,
रहेगा यूँ भी मुकद्दर से सिलसिला अपना।
अजीब दौर है हैरानियाँ भी पागल हैं,
छू नहीं सकते खुद यार हम पैसा अपना।
हम पे मसरुफियत बाजार में भी हँसती है,
हुआ बेजान पसीने से कुरता अपना।
#अशोक सिंहासने ‘असीम’
परिचय : अशोक सिंहासने लेखन जगत में ‘असीम’ नाम से लेखन करते हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं से पदाधिकारी के रुप में जुड़े हैं। साथ ही एक मासिक पत्रिका के प्रबंध संपादक और मनु प्रकाशन के संरक्षक भी हैं। आपका निवास वार्ड न. २२ सोगपथ(बालाघाट म.प्र.) में है।
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