जग तरा दे वो नाव है बेटी,
पिता की प्यारी चाव है बेटी..
मत पड़ने दो छाया दरिंदों की,
क्योंकि पेड़ों-सी छांव है बेटी।
बहती नदी का कुल है बेटी,
बड़े बरगदों का मूल है बेटी..
क्यों तोड़ते हो मासूम कली को,
आँगन का खिला फूल है बेटी।
लक्ष्मी-सी करामात है बेटी,
सूखे में भी बरसात है बेटी..
क्यू लूटते हो इज्जत किसी की,
भाई-बहन का साथ है बेटी।
माता का श्रृंगार है बेटी,
घर महके वो बयार है बेटी..
मत मारना कभी कोख में इनको,
क्योंकि खुद घर संसार है बेटी॥
#दिनेश कुमार प्रजापत
परिचय : दिनेश कुमार प्रजापत, दौसा जिले(राजस्थान)के सिकन्दरा में रहते हैं।१९९५ में आपका जन्म हुआ है और बीएससी की शिक्षा प्राप्त की है।अध्यापक का कार्य करते हुए समाज में मंच संचालन भी करते हैं।कविताएं रचना,हास्य लिखना और समाजसेवा करने में आपकी विशेष रुचि है। आप कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।