हिंदी के प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका

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praneeta sethiya
भारत देश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है – *हिंदी* और करीब सत्तर प्रतिशत जनता हिंदी भाषा का प्रयोग दैनिक जीवन में करती है। पहले हिंदी के संचार का माध्यम सीमित था अखबार ,रेडियो, टेलीविजन, कंप्यूटर, लेपटॉप तथा इंटरनेट की दुनिया ने तो जैसे एक नई क्रांति ही ला दी हो । हिंदी सोशल मीडिया के माध्यम से अब घुसपैठिये की तरह हर जगह अपनी धाक जमा ली है । और जब से ये मोबाइल में समाई है तब से तो वह सर्वव्यापी होकर जन जन के बीच पहुँच गई है ,अब हर जानकारी छोटे बड़े तबके के लोगों के बीच बड़ी आसानी से पहुंच रही है और सबसे बड़ी बात इन सब में अंग्रेजी की नही हिंदी की धाक जमी है। नेता हो या अभिनेता  हर कोई अब हिंदी से परहेज़ नही कर रहा। सामाजिक , राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक , व्यापारिक तथा सांस्कृतिक हर क्षेत्र की जानकारी अब सोशल मीडिया के माध्यम से देश के कोने कोने में ही नहीं वरन विदेशों में भी अपनी जगह बना रही  ,हिंदी माथे की बिंदी बन रही । करीब 135 से 140 देशों के मध्य हिंदी ने अपनी जगह बनाई है, एक विशिष्ट पहचान बनाई है , जिसमें सबसे अहम भूमिका सोशल मीडिया की रही है । पहला हिंदी वेबपोर्टल सन 2000 ने हिंदी की राह को सुगम बनाकर नई एवं पुरानी पीढ़ी के बीच उसके अस्तित्व की कहानी का सफलता पूर्वक परचम लहराया है । सोशल मीडिया ने इंटरनेट के तहत कई तरह की ई पत्रिका , ई अखबार और ई किताब ने हिंदी को किताबों से बाहर निकालकर गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले में जन साधारण के हाथों का गहना बना दिया है । ब्लॉग की दुनिया से भी आज कोई अछूता नही है । आलोक कुमार को हिंदी ब्लॉगर का जनक कह सकते है और आज करीब एक लाख से ऊपर है हिंदी ब्लॉग की संख्या ।अब सोशल मीडिया की वजह से हमें किसी महापुरुष की किताब के लिये दर -दर नही भटकना पड़ता हिंदी में ई संस्करण और यहाँ तक की क्षेत्रीय भाषाओं में भी बड़ी आसानी से मिल जाती है ,बहुत ही कम ख़र्चे , बहुत ही कम जगह में बड़ी ही सरलता से हम इसे संभाल कर पढ़ भी लेते है और रख भी लेते है। फेसबुक, याहू व गूगल भी हिंदी में उपलब्ध है और सोशल मीडिया में हिंदी के प्रसार का सबसे सशक्त माध्यम भी है। हालंकि सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदी भाषा की शैली ,व्याकरण ,शुद्धता, मर्यादा , सौंदर्य , माधुर्य एवं गरिमा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है न केवल लिखित में अपितु बोलचाल की भाषा में भी एक नया स्वरूप सामने आया है  और भविष्य के लिए चिंता का भी विषय है परंतु इस नकारात्मक प्रभाव के साथ ही अनेकों सकारात्मक प्रभाव है जैसे वर्धा की अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर करीब एक हज़ार से ऊपर रचनाकारों की रचनाओं का रसास्वादन किया जा सकता है । हिंदी प्रेमियों के लिए इससे अच्छी और बड़ी खुशखबरी कुछ हो ही नही सकती कि आज हर आवश्यक और बड़े वेबसाइटों के हिंदी संस्करण सहजता से सुलभ है । यहाँ तक कि भारतीय विकास उद्योग बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम, यूनाइटेड बैंक , शेयर बाजार की भी हिंदी में वेबसाइट मौजूद है और तो और इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की भी वेबसाइट हिंदी में मुहैया है । ट्विटर पर शब्द सीमा में बंधकर कम से कम शब्दों में गागर में सागर को भरने का अथक प्रयास सम्भव हुआ है । इस सोशल मीडिया ने लोगों को निडर और जागरूक बनाया है और अपनी साधारण सी बात को भी चुटकियों में लोगों तक पहुचाया है ।कम्प्यूटर की देवनागरी लिपि ,मोबाइल पर पहुंच कर जैसे उखड़ती सांसों को फिर से एक नया जीवन दे दिया है । हिंदी अब साहित्य सीमा से किताबों की दहलीज़ को लांघकर अपने परों को खोलकर एक नई उड़ान भर रही है । और हिंदी के इस हौसले को नई ऊंचाई देकर प्रचार प्रसार किया है – सोशल मीडिया ने ।
#प्रणिता राकेश सेठिया *परी*
रायपुर, छत्तीसगढ़
 

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