
उतरी बरखा, भीगी धरती,
हरियाली चहूँ ओर छाई।
ज्यों मंदिर में बजी घण्टियाँ,
त्यों यौवन ने ली अँगड़ाई।।
झूले पड़े हर कदम की डाल,
झूलने चले सब हंस की चाल।
माँग सिंदूर, बिन्दिया सजी भाल,
भाई बने सब ही बहना की ढाल।।
लगी जैसे ही सावन की झड़ी,
मन मयूरा नाचे झरे फूलझड़ी।
हर्षित हर्षा उफनती नदी पर अड़ी,
दौड़ते कदमों में जैसे बेड़ी हो पड़ी।।
शिव शंभु का महीना है श्रावण,
सजने लगे शिवालय के आँगन।
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम् का गायन,
मनवांछित फल पा जाता अर्पण।।
तन प्रफुल्लित, मन प्रफुल्लित,
प्रफुल्लित हर सजना का अँगना।
पुष्पित पल्लवित पेड़, पौधे, वनस्पति,
सब सुखी हों, ये मेरी शुभकामना।।
#मणिमाला शर्मा
इंदौर – मध्यप्रदेश