Read Time44 Second

नाचते हैं पेड़, गाते हैं पौधे,
झूम के मतवाले मस्त हुए जाते हैं।
तपती हुई धरती के संतप्त प्राणी, ख़ुशी के इज़हार को दोहराए जाते हैं।
धूल के हैं रंग गुलाल,
हवाओं के जोश जश्न,
मौसम के स्वागत में व्याकुल आतुर होकर,
सभी जैसे प्रियवर का मिलन गीत गाते हैं।
कृष्ण घटाओं में तड़ित की प्रखर धार,
पावस के आगमन का जय घोष करती है।
तृषित धरा का उर पोषित हुआ है ज्यों,
जल नहीं अमृत की बरसात होती है।
#उर्मिला मेहता, इन्दौर
Post Views:
594