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वक्त के साथ चलो,
बक्त भी साथ चलेगा।
जीवन में खुशियों का
संसार भी मिलेगा।
क्या गम है और
क्या खुशियां,
जहाँ रहो बस
वहीं मिलेगी।
वक्त का काम है
चलते रहना जो,
हमेशा चलता रहता है
समय के साथ कोई
चले न चले वह तो
चलता ही रहता है।
नियति का हर काम
समय पर होता रहता है,
मौसम अपने समय
पर आते-जाते रहते हैं।
गर्मी के बाद बरसात
बरसात के वाद ठंड,
का मौसम आता है
फिर सदाबहार
बसंत का मौसम
समय पर आता है।
ऐसे ही नियति का
काम समय पर होता है,
जो टलता है न ही
कभी बदलता है।
बस जो जब होता है
बस समय पर होता है,
ईश्वर को जो करना है
वह कभी रुकता नहीं है।
इन्सान जो भी कोशिश
करे पर टलता नहीं है॥
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Sat Jun 10 , 2017
वो जीना भी तो क्या जीना, ये धरती की हरियाली छीनी । कुछ करना होगा, इंसानियत के लिए मरना होगा। मर चुकी इंसानियत की आशा, टूट रही है अभिलाषा। अब हम सबको कुछ करना होगा॥ सूखी हुई जो पड़ी है धरती, इसपर हमें बरसना होगा। अब मौसम हमें बदलना होगा॥ […]