#प्रभात कुमार दुबे
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वो जीना भी तो क्या जीना,
ये धरती की हरियाली छीनी ।
कुछ करना होगा,
इंसानियत के लिए
मरना होगा।
मर चुकी इंसानियत की आशा,
टूट रही है अभिलाषा।
अब हम सबको कुछ करना होगा॥
सूखी हुई जो पड़ी है धरती,
इसपर हमें बरसना होगा।
अब मौसम हमें बदलना होगा॥
जीते तो जानवरों को देखा,
अब खुद को हमें बदलना होगा॥
हम भी तो बन गए जानवर ,
अब इससे हमें निकलना होगा।
अब मौसम हमें बदलना होगा॥
वो जीना भी तो क्या जीना,
ये धरती की हरियाली छीनी
हम अपने खुद को समझते महान
अंदर से हो गए बईमान,
अब इससे हमें निकलना होगा,
अब मौसम हमें बदलना होगा॥
तड़प रही है माँ की आत्मा,
खत्म हो रहा है परमात्मा॥
अब हमें ही तो कुछ करना होगा॥
अब मौसम हमें बदलना होगा,
वो जीना भी तो क्या जीना,
ये धरती की हरियाली छीनी॥