आदमी एक चिपकू पदार्थ है,जहां मौका मिला चिपक गया। माइक में कोई फेविकॉल नहीं होता,गोंद नहीं होता,आकर्षण-सौंदर्य नहीं होता,दिखने में एक पाइप की तरह,आवाज कभी अच्छी-तो कभी खराब निकलती है और कभी बेसुरी,बकवास -सी लगती है,लेकिन आम से लेकर खास आदमी तक चाहता है-माइक मेरे पास रहे। लोग पिता को संभालकर नहीं रख पाते,लेकिन माइक संभालने में उस्ताद होते हैं। लोग अपनी पत्नी से जितना प्यार नहीं करते,उससे ज्यादा माइक से प्यार करते हैं।
माइक के जादूगर को आज की भाषा में `एंकर` कहते हैं। एंकर की आवाज सुनते ही लोग जहां के तहां खड़े हो जाते हैं। माइक माध्यम है संवेदनाओं को प्रसारित करने का। घर में बीबी का मिजाज और सभा में माइक सही हो,तो सभा सफल और घर कामयाब है। अगर बीबी बिगड़ जाए तो घर अदालत में और माइक बिगड़ जाए तो सभा श्मशान में बदल जाती है। आप कितने ही अच्छे वक्ता हों,अगर आपका माइक सही नहीं है तो बेकार साबित हो जाएंगे। आवाज का जादू हवा में उड़ जाएगा।
माइक एक व्यवस्था है।यह व्यवस्था तय करती है,किसको माइक नहीं देना है। जहां लगता है,अमुक व्यक्ति को माइक देने से कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है तो ऐसे व्यक्ति को माइक से 100 मीटर दूर रखा जाता है,ताकि आपकी बात तो पहुंच सके,लेकिन उसकी आवाज न फैल सके।
संचालन सही तभी है जब माइक भ्रष्टाचार की तरह हो। यानी जिस तरह मिल-जुलकर भ्रष्टाचार किया जाता है तो उसमें कोई नहीं फंसता,अगर अकेले ही भ्रष्टाचार की रकम को डकार लिया जाए तो वह हजम नहीं होती है। माइक किसी भ्रष्टाचार से कम नहीं है। इसको पाने और इस्तेमाल के लिए सभी उत्सुक रहते हैं। हर कोई चाहता है,माइक रूपी भ्रष्टाचार में उसका बराबर का हिस्सा हो। जिसको नहीं मिलता,वही चिल्लाता है,जिसको मिल जाता है वह माइक के साथ फोटो जरूर खिंचवाता है। एक बार प्रेमिका के साथ खुद का चित्र भले ही न ले,लेकिन माइक के साथ बड़े कैमरे से फोटो अवश्य होना चाहिए।
राजनीति बिना माइक के पूरी नहीं है। आपकी राजनीति सफल तब है,जहां भी जाएं माइक आपको थमा दिया जाए। हर कोई चाहे कि माइक आपके हाथ में हो। आप माइक से राजनीति करते हैं,माइक जैसी राजनीति करते हैं। आवाज कैसी भी,अवगुण कितने भी हों,लेकिन मधुर-मीठी आवाज ही माइक से सुनाई देती है। अब तो राजनीतिज्ञ होशियार हो गए हैं। उन्हें गांव में बुलाया जाता है,उन्हें मालूम है,वे गांव में जा रहे हैं,वहां बिजली नहीं होगी। उन्होंने बिजली दी नहीं,तो कहां से होगी। इसीलिए राजनेता अपने साथ माइक लेकर चलते हैं। अपनी बात कहने के लिए,जनता की तालियां पाने के लिए माइक लेकर जाते हैं।
पहले लोग कुर्ते की जेब में बीड़ी और माचिस का बण्डल रखते थे,अब लोग जेब में माइक लेकर चलते हैं। जहां मौका मिला,जेब से निकाला और गुर्राना शुरू कर दिया। माइक से तो भोंकना भी अच्छा लगता है। जब दो-चार एक साथ भोंकने लगते हैं,तो लगता है टी.वी.पर पार्टी हितों,साम्प्रदायिकता, धर्मनिरपेक्षता या फिर तथाकथित भ्रष्टाचार की बात हो रही है।
माइक से चिपकने वालों में सबसे ज्यादा माननीय होते हैं। कोई दूसरे के माइक से न चिपके,इसलिए सबको अलग-अलग माईक दे दिया जाता है। फिर भी कुछ दूसरे के माइक से चिपकने के साथ-साथ उसे उखाड़कर घर तक ले जाने के लिए तत्पर रहते हैं। माइक को हथियार के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं।
माइक से प्यार करना सबको अच्छा लगता है। माइक के लिए संचालक से लोग भिड़ जाते हैं,कवि आपस में उलझ जाते हैं,नेताओं में सिर फुटव्वल हो जाता है।
आज तो टी.वी. का जमाना है,टी.वी. पर बेकार बहस हो ,सामुदायिक चिन्तन हो,पार्टी की हार की बात हो या जीत की, सभी नुमाइंदे यही चाहते हैं कि उनकी बात सुनी जाए। उनका बस चले तो दूसरे माइक का बटन बंद कर दें या फिर उखाड़ कर फेंक दें।
राही
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) हैl आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl