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प्रदूषण पर्यावरण
मौसम की तरह
बदलते रहते हैं,
ठंड गर्मी में जो
प्रदूषण फैलता है..
बरसात में सब
पानी गिरने से
बह जाता है।
हाँ,सरकार विपक्ष
के सारे नेता मंत्री
सभी चिल्लाते हैं,
प्रदूषण पर्यावरण
का हो-हल्ला मचाते हैं।
वृक्षारोपण का जोर-शोर
से अभियान चलाते हैं।
लाखों रुपयों के पेड़
पौधों को लगाने के
सरकारें ठेका देती है,
उनकी देख-रेख के
लिए फिर सरकार
से पैसा निकलता है।
पैसा निकलने के बाद
फाइलें बन्द हो जाती हैं,
लाखों पेड़-पौधे बिना
लगे ही सूख जाते हैं।
थोड़ा-बहुत बरसात
में फिर ऊग जाते हैं,
यही पेड़-पौधे फाइलों
में दिखा दिए जाते हैं
बरसात के पानी से,
सारी गंदगी बह जाती है
फिर न प्रदूषण रहता है,
न ही पर्यावरण को
कोई नुकसान होता है।
बस प्रदूषण और
पर्यावरण का ऐसे ही
हल्ला होता रहता है।
और नेताओं का एक
दूसरे पर दोषारोपण
आपस में होता रहता है।
पैसा खाने का अच्छा
तरीका चलता रहता है,
प्रदूषण-पर्यावरण का
सौदा होता रहता है।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Tue Jun 6 , 2017
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