
लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ में टूटते रिश्ते,
बदन से रूह तक उकता रहें है रिश्ते।
ये दिल के रिश्ते सब अजीब से रिश्ते,
साँस लेते ही टूट से जाते हैं रिश्ते ।
टूटी सांस तो दर-ओ-बाम हुए रिश्ते,
देते रहे अहबाब दिलासे बाहरी रिश्ते ।
अशिया की तरह बिक गए सारे रिश्ते।
सर-ए-बाज़ार तमाशे नज़र आए रिश्ते।
तल्ख़ी भरे मिज़ाज से टूटे है सारे रिश्ते,
फिर यूँ हुआ कि रियाज़तों के ना रहे रिश्ते।
शाख़-ए-बे-समर दिल के चमन के रिश्ते,
अहद मांग लेते है ये सारे के सारे रिश्ते।
फसाने राख हुए यादों के गुब्बारे है रिश्ते,
अपनो से मिलाप के जज़्बे में जले है रिश्ते।
धुंध के रिश्ते गहरे दूरी सिर्फ सिसकती है,
तलाश उन्हीकी जिनके घर से निकले रिश्ते।
# बिजल जगड
मुंबई घाटकोपर