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सुनो राधे…
काश तुम मेरा मन नहीं,
मुझे चुरातीl
तो मुझे बरसाने से मथुरा,
और मथुरा से द्वारिका न जाना पड़ता।
न तोड़ने पड़ते निश्छल गोपियों के दिल,
न देना पड़ता स्वपालकों को दर्द;
न बनना पड़ता…
महाविनाश का साक्षीl
पर राधे…,
मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ…
कि,
तुमने मुझे…
अपने प्राणों की परवाह किए बिना…,
अधर्म पर धर्म के अधिष्ठान हेतु
सहर्ष जाने दिया।
तुम सचमुच महान हो राधे,
क्या कोई अपनी सांसें भी दान करता है ?
इसलिए तुम पूजनीय हो,
प्रातः स्मरणीय होll
#निकेता सिंह `संकल्प`(शिखी)
परिचय : निकेता सिंह का साहित्यिक उपनाम-संकल्प(शिखी) है। जन्मतिथि- १ अप्रैल १९८९ तथा जन्म स्थान-पुरवा उन्नाव है। वर्तमान में वाराणसी में रह रही हैं। उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव-लखनऊ शहर की निकेता सिंह ने बीएससी के अलावा एमए(इतिहास),बीएड, पीजीडीसीए और परास्नातक(आपदा प्रबंधन) की शिक्षा भी हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षा विभाग) है। आप सामाजिक क्षेत्र में शिक्षण के साथ ही अशासकीय संस्था के माध्यम से महिलाओं एवं बच्चों के उत्थान के लिए कार्यरत हैं। लेखन में विधा-गीतकाव्य, व्यंग्य और ओज इत्यादि है। क्षेत्रीय पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
सम्मान के रुप में आपको क्षेत्रीय कवि सम्मेलनों में युवा रचनाकार हेतु सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय हैं तो उपलब्धि काव्य लेखन है। आपके लेखन का उद्देश्य-जनमानस तक पहुँच बनाना है।
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बेहतरीन मेरी सखी……आपके व्यक्तित्व के इस पहलू से परिचय हुआ।
ऐसे ही अपनी लेखनी से साहित्य को समृद्ध करती रहो…, शुभकानाएं!