
मोहब्बत जो करते है
वो अंजाम से नहीं डरते।
क्योकिं ये पग पग पर
हमारा इंतहान लेती है।।
क्या दिलमें तेरे उमंगे है
दिलको छेड़ने के लिए।
क्या दिलमें तेरे तरंगे है
दिलरुबा को प्रेमरस के लिए।
तभी तो मधुर गीत गाते है
चांदनी रात में मिलकर।।
वो आँखों को बिछाता होगा
खुद पे सितम ढहाता होगा।
बड़ी मासूम सी चाहत थी
पर कैसे इसे वो छिपाया होगा।।
दिलसे प्यार किसी से भी
कुछ इसी तरह का होता है।
दूर होकर भी किनारा उसे
सदा ही बहुत करीब लगा है।।
चाहने वालो को सहारा नहीं मिलता।
डूबने वालो को किनारा कहां मिलता।
मोहब्बत में बस दूरियां ही लिखी थी।
नहीं तो राधाको क्या कान्हा नहीं मिलता।।
दुआओं पे हमारे ऐतबार रखना।
दिलमें कोई न सवाल रखना।
देना चाहते हो अगर खुशियाँ हमें।
तो खुश रहकर अपना ख्याल रखना।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई